दिल्ली हाईकोर्ट ने Office Affair को रेप मानने से किया इंनकार! कहा ‘महिलाएं कर रही कानून का दुरुपयोग’

दिल्ली हाईकोर्ट ने Office Affair को रेप मानने से किया इंनकार! कहा 'महिलाएं कर रही कानून का दुरुपयोग'
दिल्ली हाईकोर्ट ने Office Affair को रेप मानने से किया इंनकार! कहा 'महिलाएं कर रही कानून का दुरुपयोग'

नई दिल्ली: कार्यस्थल पर नजदीकी संबंधों से बने सहमति से बने रिश्ते कई बार बाद में बलात्कार जैसे अपराधों के रूप में रिपोर्ट किए जाते हैं, जब वे बिगड़ जाते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए एक रेप के आरोपी को जमानत दी, जिस पर उसकी महिला सहकर्मी ने पिछले साल मामला दर्ज कराया था।

हाईकोर्ट की जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा, “आज के समय में, कार्यस्थल पर नजदीकी संबंध कई बार आपसी सहमति से रिश्ते में बदल जाते हैं, लेकिन जब ये रिश्ते खराब हो जाते हैं, तो इन्हें अपराध के रूप में दर्ज कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में, बलात्कार और दो वयस्कों के बीच सहमति से बने संबंधों के बीच अंतर को समझना आवश्यक है।”

आरोपी का पक्ष: रिश्ता प्रेमपूर्ण और सहमति से था

जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान आरोपी ने कोर्ट में तर्क दिया कि वह और महिला सहकर्मी एक-दूसरे से गहराई से प्रेम करते थे और उनका रिश्ता पूरी तरह आपसी सहमति पर आधारित था। आरोपी ने बताया कि बाद में उसे पता चला कि महिला किसी और के साथ भी डेटिंग कर रही थी और इसके बाद उसने उससे सभी संबंध खत्म कर लिए।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “यह मामला भी ऐसे ही श्रेणी में आता है, जहां आवेदक (आरोपी) और महिला सहकर्मी के बीच कार्यस्थल पर घनिष्ठता बढ़ी और उन्होंने एक साल तक संबंध बनाए। लेकिन जब रिश्ता बिगड़ा, तो मामला जबरदस्ती और बलात्कार के आरोप में तब्दील हो गया।”

आरोपी को मिली जमानत

कोर्ट ने यह भी माना कि आरोपी 30 मई 2024 से न्यायिक हिरासत में है और उसे अनिश्चित काल तक जेल में रखना कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं करेगा। इसी आधार पर आरोपी को जमानत दी गई।

महिलाएं कर रही कानून का दुरुपयोग– हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि बदलते समय के साथ महिलाएं कार्यस्थल पर सशक्त भूमिका निभा रही हैं। ऐसे में, कानून बनाने वाले और उन्हें लागू करने वाले संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे महिलाओं की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करें।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा, “न्यायपालिका की भी समान जिम्मेदारी बनती है कि वह कानूनों की व्याख्या और उन्हें व्यावहारिक रूप से लागू करे ताकि सुरक्षा केवल कागजों तक सीमित न रहकर वास्तविकता बने।”

उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, अदालतों पर एक और बड़ी जिम्मेदारी यह भी है कि वे ऐसे मामलों में संतुलित दृष्टिकोण अपनाएं और कानूनों के दुरुपयोग को रोकें।”

न्यायपालिका की दोहरी भूमिका

यह मामला कार्यस्थल पर बनने वाले संबंधों और उनके कानूनी निहितार्थों को लेकर एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है। हाईकोर्ट ने साफ किया कि जहां महिलाओं की सुरक्षा महत्वपूर्ण है, वहीं कानूनों का दुरुपयोग रोकना भी समान रूप से आवश्यक है।

Digikhabar Editorial Team
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