
नागपुर: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने एक चौंकाने वाले मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक मजदूर की उम्रकैद की सजा को संशोधित करते हुए इसे 10 साल की सश्रम कारावास में बदल दिया। यह मामला 2013 का है, जब अकोला के एक मजदूर ने डेढ़ साल की मासूम बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न किया था।
न्यायमूर्ति नितिन बी सूर्यवंशी और प्रवीण एस पाटिल की पीठ ने अभियोजन पक्ष के तर्कों को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी की अपराधिता संदेह से परे साबित हुई है। घटना उस समय हुई जब आरोपी ने परिवार के पुरुष के घर में जबरन घुसकर बच्ची पर हमला किया। मां के विरोध करने पर वह बाहर मदद मांगने गई, लेकिन लौटने पर उसने आरोपी को अपनी बेटी के साथ दुष्कर्म करते पाया। आरोपी ने मां पर भी हमला करने की कोशिश की, लेकिन शोर मचाने पर वह भाग गया।
कोर्ट ने बचाव पक्ष के इस दावे को खारिज कर दिया कि भेदक हमला का कोई ठोस सबूत नहीं था और चिकित्सा अधिकारी की गवाही निर्णायक नहीं थी। पीठ ने कहा कि मेडिकल साक्ष्य, गवाहों के बयान और परिस्थितियों ने पोक्सो एक्ट के तहत अपराध को पूरी तरह स्थापित किया।
हालांकि, सजा की गंभीरता पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा, “हमें लगता है कि आजीवन कारावास इस मामले में अत्यधिक कठोर है। 10 साल की सजा न्याय के हित में पर्याप्त होगी।” इस फैसले ने कानूनी हलकों में चर्चा छेड़ दी है।