हैदराबाद में सरकार ने काटा 400 एकड़ जंगल, छात्रों के विरोध से नहीं पड़ रहा असर

हैदराबाद में सरकार ने काटा 400 एकड़ जंगल, छात्रों के विरोध से नहीं पड़ रहा असर
हैदराबाद में सरकार ने काटा 400 एकड़ जंगल, छात्रों के विरोध से नहीं पड़ रहा असर

हैदराबाद: तेलंगाना सरकार ने हैदराबाद के आईटी कॉरिडोर में स्थित कंचा गाचीबोवली गांव में विवादास्पद भूमि की सफाई की प्रक्रिया को तेज कर दिया है, बावजूद इसके कि विश्वविद्यालयों के छात्र इस पर विरोध कर रहे हैं। रविवार दोपहर से शुरू हुई यह प्रक्रिया सोमवार तक जारी रही, और इसमें अतिरिक्त Earthmovers को लाकर काम को तेज़ी से किया जा रहा है।

सरकार का दावा है कि उसे कंचा गाचीबोवली के 400 एकड़ भूमि का मालिकाना हक है और वह इसे एक अत्याधुनिक आईटी पार्क, बेहतर शहरी कनेक्टिविटी और शहरी जीवन को सुधारने के उद्देश्य से विकसित करना चाहती है। तेलंगाना सरकार का अनुमान है कि इस भूमि की नीलामी से 10,000 से 15,000 करोड़ रुपये की आय हो सकती है।

“हमारे जंगल को उजाड़ रहे हैं”

लेकिन इस विकास कार्य के खिलाफ हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने जमकर विरोध किया है। छात्रों का कहना है कि इस इलाके में लगभग 50 Earthmovers द्वारा चलाया जा रहा सफाई अभियान न केवल हरियाली को नष्ट कर रहा है, बल्कि यह स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर भी गंभीर असर डाल सकता है। इस बारे में हाई कोर्ट में एक याचिका पेंडिंग है, जिसकी सुनवाई 7 अप्रैल को होगी।

स्थानीय जलवायु पर होगा असर

अर्थशास्त्रियों और पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इस जंगल की सफाई से स्थानीय जलवायु में 1 से 4 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ सकता है। इस क्षेत्र में स्थित कंचा गाचीबोवली जंगल (KGF) में 233 पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं, जो कर्नाटक और हैदराबाद के अन्य राष्ट्रीय उद्यानों से अधिक विविधतापूर्ण हैं। एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि इस जंगल को बनाए रखने में कम खर्च आता है, जबकि इसे फिर से बनाने में भारी खर्च होगा।

छात्रों ने किया विरोध, 50 से ज्यादा गिरफ्तार

रविवार को 50 से अधिक छात्र, जो इस भूमि सफाई का विरोध कर रहे थे, उन्हें साइबराबाद पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। छात्रों ने हैदराबाद विश्वविद्यालय और WWF-इंडिया द्वारा 2008-09 में किए गए संयुक्त अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि कंचा गाचीबोवली एक जैव विविधता से भरपूर इकोसिस्टम है, जिसमें 455 से अधिक पौधों और वन्यजीवों की प्रजातियां पाई जाती हैं।

सरकार का तर्क

तेलंगाना सरकार का कहना है कि यह विकास शहर के लिए आवश्यक है, और इससे हैदराबाद को और अधिक प्रगति मिल सकती है। हालांकि, पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों का कहना है कि इस विकास कार्य के चलते स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। केंद्र और राज्य सरकार के बीच यह टकराव, हैदराबाद के पर्यावरण और शहरी विकास के भविष्य पर अहम सवाल खड़ा कर रहा है। क्या यह विकास कार्य सही दिशा में है या हैदराबाद की प्राकृतिक धरोहर को नुकसान पहुंचाने वाली कार्रवाई? समय ही बताएगा!