नई दिल्ली: भारतीयों में घरेलू उपचार और सेल्फ मेडिकेशन का चलन आम बात है। बुखार, सिरदर्द या बदन दर्द जैसी सामान्य परेशानियों के लिए अक्सर बिना डॉक्टर की सलाह के दवा लेना आम हो गया है। इन समस्याओं के लिए सबसे अधिक ली जाने वाली दवाओं में से एक है डोलो 650। लेकिन हाल ही में एक डॉक्टर की टिप्पणी ने इस प्रवृत्ति पर नई बहस छेड़ दी है।
अमेरिका में रहने वाले गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट और स्वास्थ्य शिक्षक डॉ. पलानीअप्पन मणिक्कम ने एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा, “भारतीय डोलो 650 को ऐसे खाते हैं जैसे ये कैडबरी जेम्स हो।” इस पोस्ट को अब तक 15 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है और इस पर मीम्स और प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है।
सोशल मीडिया पर यूज़र्स ने दी मज़ेदार प्रतिक्रियाएं
एक यूज़र ने लिखा, “मेरी मां को अगर हल्का बुखार भी होता है तो दिन में दो बार डोलो लेती हैं।”
एक अन्य ने टिप्पणी की, “डोलो 650 अब डेली विटामिन बन गया है। डिस्प्रिन भी।”
एक यूज़र ने डोलो की तस्वीर के साथ लिखा, “डोलो 650 लीजिए, थक गए होंगे।”
एक अन्य ने लिखा, “डोलो 650 दिखाता है कि हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी कमजोर है। कोई मानक प्रक्रिया नहीं है, सब खुद के डॉक्टर बन गए हैं।”
सबसे मजेदार प्रतिक्रिया एक यूज़र की रही, “दिल टूटे तो भी डोलो 650 काम आता है क्या? भारत में: बुखार? डोलो। सिरदर्द? डोलो। अस्तित्व का संकट? फिर भी डोलो।”
सेल्फ मेडिकेशन पर सवाल
हालांकि मीम्स और मज़ाक के बीच इस विषय का गंभीर पहलू यह भी है कि बिना सलाह के दवाओं का सेवन लंबे समय में शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि डोलो 650 जैसी दवाएं केवल जरूरत पड़ने पर और चिकित्सक की सलाह से ही ली जानी चाहिए। डोलो 650 को लेकर इस चर्चा ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि भारत में आम लोग कितनी आसानी से दवाओं का सेवन कर लेते हैं, चाहे वह जरूरी हो या नहीं।