नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हैदराबाद के कंचा गचिबोवली क्षेत्र में लगभग 100 एकड़ जंगल को बिना अनुमति साफ करने पर तेलंगाना सरकार को कड़ी फटकार लगाई। यह इलाका हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पास स्थित है और राज्य सरकार की ओर से वहां तेजी से बुलडोज़र चलाकर हरियाली खत्म की गई थी।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने राज्य सरकार की कार्रवाई पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “हम केवल यह देख रहे हैं कि बिना अनुमति के बुलडोज़र चलाकर 100 एकड़ जंगल को मिटा दिया गया। अगर आपको कुछ बनाना ही था, तो पहले अनुमति क्यों नहीं ली गई?”
पीठ ने इस बात पर भी चिंता जताई कि जंगल खत्म होने से वहां रहने वाले जानवरों को खतरा हुआ है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश किए गए वीडियो में हिरणों जैसे शाकाहारी जानवरों को भागते और आवारा कुत्तों से हमला झेलते हुए देखा गया। अदालत ने सरकार द्वारा कुछ जानवरों को संरक्षित प्रजातियों की सूची से खुद ही निकालने की रिपोर्ट पर भी सवाल उठाए।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के वाइल्डलाइफ वार्डन को आदेश दिया कि बेघर हुए जानवरों को तत्काल सुरक्षा और आश्रय दिया जाए। साथ ही कोर्ट ने अपने 3 अप्रैल के आदेश को दोहराया जिसमें 100 एकड़ जमीन पर किसी भी निर्माण या साफ-सफाई कार्य पर रोक लगाई गई थी, सिवाय पेड़ों की सुरक्षा से जुड़ी गतिविधियों के।
न्यायमूर्ति गवई ने सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि यदि राज्य सरकार ने जंगल को बहाल करने की ठोस योजना नहीं सौंपी, तो मुख्य सचिव समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को जेल जाना पड़ सकता है। उन्होंने पूछा, “तीन दिन में, वह भी छुट्टियों में, ऐसा क्या जरूरी था कि इतनी जल्दी में जंगल साफ करना पड़ा?”
यह विवाद राज्य सरकार की उस योजना से जुड़ा है जिसमें विश्वविद्यालय के पास की लगभग 400 एकड़ जमीन का पुनर्विकास प्रस्तावित है। छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और ‘वाटा फाउंडेशन’ जैसे एनजीओ ने इसका विरोध करते हुए मांग की है कि इस क्षेत्र को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत ‘राष्ट्रीय उद्यान’ घोषित किया जाए।