आपातकाल पर शशि थरूर का विवादित बयान, कांग्रेस से सांसद को हुआ मोह भंग

आपातकाल पर शशि थरूर का विवादित बयान, कांग्रेस से सांसद को हुआ मोह भंग
आपातकाल पर शशि थरूर का विवादित बयान, कांग्रेस से सांसद को हुआ मोह भंग

नई दिल्ली: वरिष्ठ कांग्रेस नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने वर्ष 1975 से 1977 के बीच लगे आपातकाल को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि इसे केवल भारतीय इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में नहीं बल्कि लोकतंत्र के लिए एक स्थायी चेतावनी के रूप में याद किया जाना चाहिए। उन्होंने यह विचार मलयालम दैनिक दीपिका में लिखे अपने लेख में व्यक्त किए।

‘अनुशासन बना क्रूरता’

थरूर ने कहा कि उस समय अनुशासन और राष्ट्रीय व्यवस्था के नाम पर जो प्रयास किए गए, वे जल्दी ही दमन और अन्याय में बदल गए। उन्होंने विशेष रूप से संजय गांधी द्वारा चलाई गई जबरन नसबंदी मुहिम को ‘राज्य की अति की कुख्यात मिसाल’ बताया।

“ग्रामीण इलाकों में हिंसा और जबरदस्ती से लक्ष्य पूरे किए गए। वहीं, दिल्ली जैसे शहरों में झुग्गी-बस्तियों को बेरहमी से गिरा दिया गया, जिससे हजारों लोग बेघर हो गए। उनकी भलाई की कोई परवाह नहीं की गई,” थरूर ने लिखा।

भारत आगे बढ़ा है, लेकिन सतर्कता जरूरी

थरूर ने यह भी माना कि भारत 1975 के मुकाबले अब कहीं अधिक आत्मविश्वासी, विकसित और मजबूत लोकतंत्र बन चुका है। लेकिन उन्होंने आगाह किया कि आपातकाल को संभव बनाने वाली प्रवृत्तियां आज भी विभिन्न रूपों में मौजूद हैं।

सत्ता के केंद्रीकरण का खतरा

थरूर ने चेताया कि सत्ता को केंद्रित करने, असहमति को दबाने और संवैधानिक मर्यादाओं को दरकिनार करने की प्रवृत्ति अक्सर “राष्ट्रीय हित” या “स्थिरता” के नाम पर फिर से सिर उठा सकती है।

लोकतंत्र को सक्रिय रूप से बचाना होगा

“लोकतंत्र कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे हल्के में लिया जाए। यह एक कीमती विरासत है जिसे लगातार सींचना और सुरक्षित रखना होता है,” थरूर ने लिखा।

उन्होंने जोर दिया कि आपातकाल एक गंभीर चेतावनी है और लोकतंत्र के रक्षकों को हमेशा सजग रहना चाहिए।

पृष्ठभूमि

25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी, जो 21 मार्च 1977 तक चला। इस दौरान नागरिक स्वतंत्रताओं पर भारी अंकुश लगाया गया था, विपक्षी नेताओं को जेल में डाला गया और मीडिया पर सेंसरशिप लागू की गई थी।

थरूर का यह लेख ऐसे समय में सामने आया है जब आपातकाल की पुनरावलोकन और लोकतंत्र की स्थिति पर देशभर में चर्चा हो रही है।