सुप्रीम कोर्ट से विपक्ष को फटकार, बिहार में मतदाता सूची संशोधन पर रोक लगाने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट से विपक्ष को फटकार, बिहार में मतदाता सूची संशोधन पर रोक लगाने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट से विपक्ष को फटकार, बिहार में मतदाता सूची संशोधन पर रोक लगाने से किया इनकार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले इस प्रक्रिया के समय को लेकर गंभीर चिंता जताई।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि मतदाता सूची का संशोधन अपने आप में कोई समस्या नहीं है, लेकिन यह सवाल जरूर उठता है कि यह प्रक्रिया ठीक चुनाव से पहले क्यों की जा रही है। अदालत ने कहा, “आपकी (चुनाव आयोग की) प्रक्रिया पर हमें आपत्ति नहीं है, पर इसका समय संदिग्ध है… बिहार में SIR को विधानसभा चुनाव से क्यों जोड़ा गया? यह प्रक्रिया चुनाव से स्वतंत्र रूप से क्यों नहीं हो सकती?”

जरूरी पहचान पत्र को मान्यता देने के निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने का निर्देश भी दिया, ताकि पुनरीक्षण प्रक्रिया में आम नागरिकों को असुविधा न हो। कोर्ट इस मामले में दायर कई याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी।

पीठ ने कहा, “हमें चुनाव आयोग पर कोई संदेह नहीं है। वे कह रहे हैं कि यह एक परीक्षण की प्रक्रिया है, तो उन्हें मौका दिया जाना चाहिए।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 28 जुलाई को इस मामले पर अगली सुनवाई होगी और तब तक ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित नहीं की जाएगी।

न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाएं

न्यायमूर्ति धूलिया ने यह भी चेतावनी दी कि एक बार मतदाता सूची अंतिम रूप में प्रकाशित हो जाने के बाद, अदालतें उसमें हस्तक्षेप नहीं करतीं। इसका अर्थ है कि अगर किसी व्यक्ति का नाम सूची से हटा दिया गया, तो चुनाव से पहले उसे न्याय मिलने की संभावना बेहद कम रह जाएगी। “डिसइंफ्रेंचाइज हो चुका व्यक्ति चुनाव से पहले इसे चुनौती नहीं दे पाएगा,” उन्होंने कहा।

गैर-नागरिकों को हटाने की प्रक्रिया पर सहमति

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने समय पर चिंता जताई, लेकिन यह स्वीकार किया कि मतदाता सूची से फर्जी या गैर-नागरिक नामों को हटाने की प्रक्रिया सही दिशा में है। चुनाव आयोग ने यह प्रक्रिया पिछले महीने शुरू की थी, जिसमें दो दशकों में हुए बड़े पैमाने पर नाम जोड़ने और हटाने की असमानताओं को दूर करने की आवश्यकता बताई गई थी।

राजनीतिक दलों की आपत्ति

इस प्रक्रिया को लेकर कांग्रेस और राजद जैसे विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया है, उनका आरोप है कि यह कदम चुनाव से पहले वोटर सूची में हेरफेर करने के इरादे से उठाया गया है।

अगली सुनवाई की तारीख: 28 जुलाई 2025
ड्राफ्ट सूची तब तक नहीं होगी प्रकाशित

सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल चुनाव आयोग को राहत दी है लेकिन यह भी साफ कर दिया कि लोकतंत्र में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए मतदाता सूची जैसे अहम दस्तावेजों में किसी भी बदलाव का समय बेहद संवेदनशील होता है। अब सबकी निगाहें 28 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं।