Hezbollah leader Hassan Nasrallah: हसन नसरल्लाह की मौत के बाद क्या बदलेगा लेबनान और हिज्बुल्लाह या पूरे विश्व पर आने वाला है कोई गहरा संकट

Hezbollah leader Hassan Nasrallah: हसन नसरल्लाह की मौत के बाद क्या बदलेगा लेबनान और हिज्बुल्लाह या पूरे विश्व पर आने वाला है कोई गहरा संकट
Hezbollah leader Hassan Nasrallah: हसन नसरल्लाह की मौत के बाद क्या बदलेगा लेबनान और हिज्बुल्लाह या पूरे विश्व पर आने वाला है कोई गहरा संकट

शुक्रवार को लेबनान की राजधानी बेरूत पर हवाई हमले के बाद इजरायल ने हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत का ऐलान करते हुए इसे बड़ी जीत बताया। नसरल्लाह और दूसरे कमांडरों की मौत हिजबुल्लाह के लिए निश्चित रूप से गंभीर झटका है। हिजबुल्लाह क्षेत्र में काफी ताकतवर रहा है। लेबनान पर पकड़ के चलते माना जा रहा है कि ये गुट लड़ाई जारी रखेगा। वहीं देश की खस्ताहाल होती अर्थव्यवस्था और लेबनानी लोगों में शोषण से पनपे गुस्से से ये भी लगता है कि इजरायल के खिलाफ ये गुट अब कमजोर पड़ जाएगा।

हसन नसरल्लाह, हिज्बुल्लाह के महासचिव, एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने पिछले तीन दशकों में लेबनान और मध्य पूर्व की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया है। उनका नेतृत्व और संगठन की सैन्य शक्ति ने इजरायली सुरक्षा बलों (IDF) को कई बार चुनौती दी है। लेकिन नसरल्लाह का प्रभाव केवल सैन्य संघर्षों तक ही सीमित नहीं है; उनका राजनीतिक दृष्टिकोण और रणनीतियाँ लेबनान की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर डालती हैं। इस लेख में हम नसरल्लाह के नेतृत्व, हिज्बुल्लाह के भविष्य, और लेबनान के लोगों की सोच पर चर्चा करेंगे।

हसन नसरल्लाह: एक प्रभावशाली नेता

हसन नसरल्लाह का जन्म 31 अगस्त 1960 को लेबनान के एक शिया परिवार में हुआ। उनका राजनीतिक जीवन 1980 के दशक में शुरू हुआ जब उन्होंने हिज्बुल्लाह में शामिल होने का निर्णय लिया। नसरल्लाह ने संगठन की राजनीतिक और सैन्य रणनीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1992 में महासचिव के रूप में पदभार ग्रहण किया और तब से हिज्बुल्लाह को एक मजबूत राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया।

उनकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण 2000 में इजरायल की लेबनान से वापसी और 2006 के युद्ध के दौरान उनकी सैन्य सफलताएँ थीं। नसरल्लाह की रणनीतियों ने उन्हें न केवल एक सैन्य नेता के रूप में बल्कि एक राजनीतिक आइकन के रूप में भी पहचान दिलाई।

फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, लेबनान में 60 के दशक तक ईसाई बहुसंख्यक थे और देश काफी समृद्ध था। 1948 और फिर 1967 में हजारों फिलिस्तीनियों के आने के बाद जनसांख्यिकीय बदलाव हुआ और मुस्लिम बहुसंख्यक बन गए। वहीं लेबनान में अशांति की शुरुआत फतह और फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) के आने से हुई। जॉर्डन के राजा हुसैन बिन तलाल के बेदखल करने के बाद फतह और पीएलओ के लोग आए और लेबनान का भविष्य बदल गया।

साल 1975 के बाद लेबनान पूरी तरह से बदल गया जब ईसाई मिलिशिया और पीएलओ विद्रोहियों के बीच 15 साल तक गृहयुद्ध चला और देश एक गहरे रसातल में चला गया। इस युद्ध में 1,50,000 लोग मारे गए और करीब 10 लाख को देश छोड़ना पड़ा। इसने लेबनान की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तबाह कर दिया, जिससे वह आज तक कभी नहीं उबर पाया।

साल 1982 में लेबनान पर इजरायली आक्रमण और हिजबुल्लाह की स्थापना फिर देश के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ बना। हिजबुल्लाह के उभार ने ये तय कर दिया कि लेबनान स्थायी तौर पर संघर्ष और आर्थिक बर्बादी की जद में रहने वाला है। हिजबुल्लाह और इजरायल के संघर्ष ने लेबनान को लगातार पीछे धकेला है। 1983 से मौजूदा समय तक लगातार कोई ना कोई संघर्ष देश के लोग देखते रहे हैं। हालिया हमलों के बाद देश एक बड़े युद्ध और तबाही की कगार पर खड़ा दिख रहा है।

हिज्बुल्लाह का वर्तमान स्थिति

हिज्बुल्लाह, जो मुख्य रूप से शिया मुसलमानों का संगठन है, उसने लेबनान की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। संगठन की राजनीतिक शाखा लेबनान की संसद में महत्वपूर्ण सीटें रखती है और विभिन्न सरकारों में भागीदारी करती है। हालाँकि, हिज्बुल्लाह की सैन्य गतिविधियाँ और इजरायल के खिलाफ उसकी रुख ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादास्पद बना दिया है।

इजरायल के साथ संघर्ष

नसरल्लाह के नेतृत्व में हिज्बुल्लाह ने इजरायल के खिलाफ कई सैन्य ऑपरेशन किए हैं। 2006 का युद्ध इस संदर्भ में एक प्रमुख उदाहरण है, जब हिज्बुल्लाह ने इजरायली सैनिकों और नागरिकों के खिलाफ कई हमले किए। इस संघर्ष ने न केवल दोनों पक्षों के लिए भारी नुकसान उठाया, बल्कि लेबनान की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को भी बर्बाद कर दिया।

हिज्बुल्लाह का भविष्य

नसरल्लाह के नेतृत्व के बाद हिज्बुल्लाह का भविष्य कई कारकों पर निर्भर करेगा:

1. नेतृत्व परिवर्तन: नसरल्लाह की मौत के बाद किसे नेतृत्व सौंपा जाएगा, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। यदि संगठन एक मजबूत और सक्षम नेता को नहीं चुन पाता, तो यह अंदरूनी कलह का सामना कर सकता है।

2. आर्थिक स्थिति: लेबनान की अर्थव्यवस्था वर्तमान में गंभीर संकट में है। यदि हिज्बुल्लाह इस संकट के दौरान अपनी राजनीतिक स्थिति को बनाए रखने में असफल रहता है, तो यह उसके समर्थकों के बीच असंतोष का कारण बन सकता है।

3. इजरायल के साथ संबंध: अगर इजरायल और हिज्बुल्लाह के बीच सैन्य संघर्ष फिर से भड़कता है, तो इसका असर न केवल दोनों पक्षों पर, बल्कि पूरे क्षेत्र पर पड़ेगा। हिज्बुल्लाह को इजरायल की ताकत का सामना करने के लिए अपनी सैन्य क्षमताओं को और मजबूत करना होगा।

4. अंतरराष्ट्रीय समर्थन: हिज्बुल्लाह का अस्तित्व ईरान और सीरिया जैसे देशों के समर्थन पर निर्भर करता है। यदि यह समर्थन कम होता है, तो संगठन की सैन्य और राजनीतिक ताकत कमजोर हो सकती है।

लेबनान के लोगों की सोच

लेबनान में लोगों की सोच हिज्बुल्लाह के प्रति विभाजित है। कुछ लोग संगठन को लेबनान की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं, जबकि अन्य इसे देश के लिए खतरा मानते हैं।

समर्थक दृष्टिकोण

1. सुरक्षा: कई लेबनानी नागरिकों का मानना है कि हिज्बुल्लाह ने इजरायल के खिलाफ सुरक्षा की गारंटी दी है। 2006 के युद्ध के बाद, हिज्बुल्लाह की सैन्य ताकत ने कई लोगों को सुरक्षा का एहसास दिलाया।

2. राजनीतिक शक्ति: हिज्बुल्लाह ने शिया समुदाय को राजनीतिक ताकत प्रदान की है। इसके समर्थकों का मानना है कि संगठन ने शिया मुद्दों को उठाने और उनकी आवाज़ को मुख्यधारा में लाने का काम किया है।

विरोधी दृष्टिकोण

1. आर्थिक संकट: लेबनान की गंभीर आर्थिक स्थिति के लिए हिज्बुल्लाह को दोषी ठहराया जा रहा है। आलोचकों का मानना है कि संगठन की सैन्य गतिविधियाँ और राजनीतिक निर्णयों ने देश को आर्थिक बर्बादी की ओर धकेल दिया है।

2. राजनीतिक अस्थिरता: कई लोग हिज्बुल्लाह को लेबनान में राजनीतिक अस्थिरता का मुख्य कारण मानते हैं। उनका कहना है कि संगठन की नीतियाँ और इजरायल के साथ संघर्ष ने देश को लगातार संघर्षों में झोंका है।

विवाद और आरोप

नसरल्लाह और हिज्बुल्लाह और विवाद और आरोपों का सामना करना पड़ा है:

1. आतंकवाद का समर्थन: हिज्बुल्लाह को अमेरिका और कई अन्य देशों द्वारा आतंकवादी संगठन माना जाता है। नसरल्लाह पर आरोप है कि वे ईरान के समर्थन से आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।

2. मानवाधिकारों का उल्लंघन: नसरल्लाह के नेतृत्व में हिज्बुल्लाह के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप लगाए गए हैं। आलोचकों का कहना है कि संगठन ने नागरिकों के खिलाफ हिंसा और राजनीतिक प्रतिशोध को बढ़ावा दिया है।

3. सीरिया युद्ध में हस्तक्षेप: नसरल्लाह ने सीरिया के गृह युद्ध में बशर अल-असद के समर्थन में हिज्बुल्लाह के लड़ाकों को भेजा। इस कदम ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें आलोचना का सामना कराया।

निष्कर्ष

हसन नसरल्लाह की मौत के बाद हिज्बुल्लाह का भविष्य लेबनान के लिए कई संभावनाएँ और चुनौतियाँ लेकर आएगा। नसरल्लाह का प्रभाव और संगठन की सैन्य ताकत उनके नेतृत्व में महत्वपूर्ण रहे हैं, लेकिन भविष्य में नेतृत्व परिवर्तन, आर्थिक संकट और अंतरराष्ट्रीय समर्थन जैसे कारक भी महत्वपूर्ण होंगे। लेबनान के लोगों की सोच भी हिज्बुल्लाह की दिशा को प्रभावित करेगी, जो एक विभाजित और जटिल स्थिति में है।

हिज्बुल्लाह का भविष्य केवल संगठन की राजनीतिक और सैन्य ताकत पर नहीं, बल्कि लेबनान की सामाजिक और आर्थिक स्थिरता पर भी निर्भर करेगा। अगर संगठन अपने भीतर के संकटों का सामना नहीं कर पाता, तो यह लेबनान के लिए और भी बड़ी समस्याएँ पैदा कर सकता है। इस प्रकार, नसरल्लाह और हिज्बुल्लाह का अस्तित्व और प्रभाव, न केवल लेबनान बल्कि पूरे मध्य पूर्व की स्थिरता पर गहरा असर डालेगा।

Digikhabar Editorial Team
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