बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले चुनावी रणनीतिकार और ‘जन सुराज’ के संस्थापक प्रशांत किशोर को एक बड़ा झटका लगा है। पार्टी की कोर कमेटी के दो प्रमुख सदस्य, पूर्व सांसद मोनाजिर हसन और पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। दोनों नेताओं ने इस्तीफे के पीछे निजी कारण बताए हैं, लेकिन यह इस्तीफा कई सवाल खड़े कर रहा है।
मोनाजिर हसन और देवेंद्र प्रसाद यादव दोनों ही अनुभवी नेता हैं और इस इस्तीफे से बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है। मोनाजिर हसन पहले आरजेडी और जेडीयू में रह चुके हैं, जबकि देवेंद्र प्रसाद यादव आरजेडी से ‘जन सुराज’ में आए थे। दोनों नेताओं को हाल ही में राज्य की 125 सदस्यीय कोर कमेटी में शामिल किया गया था, जो पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने के लिए बनाई गई थी।
मोनाजिर हसन ने इस्तीफे के पत्र में क्या कहा?
मोनाजिर हसन ने अपने इस्तीफे के पत्र में लिखा, “जन सुराज ने राज्य स्तर पर 125 या 151 लोगों की कोर कमेटी का गठन किया है। इस सम्मान के लिए मैं पार्टी का आभारी हूं, लेकिन अपरिहार्य कारणों से मैं इस कोर कमेटी में नहीं रह सकता। हमारी कोर कमेटी से इस्तीफा स्वीकार किया जाए। हालांकि, मैं जन सुराज पार्टी में सदस्य के रूप में मजबूती से बना रहूंगा।” इस पत्र से यह साफ है कि हसन पार्टी से इस्तीफा दे रहे हैं, लेकिन वह पार्टी से पूरी तरह बाहर नहीं जा रहे हैं और सदस्य के तौर पर जुड़े रहेंगे।
क्या जन सुराज में सब ठीक नहीं है?
इस इस्तीफे के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या जन सुराज पार्टी में कुछ ठीक नहीं चल रहा है? क्या पार्टी के भीतर असंतोष और मतभेद हैं? हाल ही में बिहार में चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे, और इन चुनावों में जन सुराज पार्टी को निराशाजनक परिणाम मिले थे। पार्टी ने पहली बार इन उपचुनावों में हिस्सा लिया, लेकिन वह सभी सीटों पर हार गई।
इमामगंज में जन सुराज के उम्मीदवार को 37 हजार से ज्यादा वोट मिले थे, जबकि बेलागंज में 17 हजार से अधिक वोट मिले थे। हालांकि, तरारी और रामगढ़ सीटों पर जन सुराज के उम्मीदवार को केवल 5,522 और 6,513 वोटों के साथ संतोष करना पड़ा था। इसके अलावा, बिहार विधान परिषद के तिरहुत स्नातक क्षेत्र के उपचुनाव में भी जन सुराज को हार का सामना करना पड़ा था।
इन हारों के बाद पार्टी के भीतर असंतोष की आहट सुनाई देने लगी है। पार्टी की कमजोरी और चुनावी परिणामों पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि, कुछ नेता और समर्थक इसे पार्टी की शुरुआती चरण की परेशानी मानते हैं और उम्मीद जताते हैं कि पार्टी भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करेगी।
क्या होगा भविष्य?
मोनाजिर हसन और देवेंद्र प्रसाद यादव जैसे नेताओं का इस्तीफा पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन प्रशांत किशोर की पार्टी ने पहले ही कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। पार्टी के भीतर कुछ नेताओं की नाराजगी स्वाभाविक हो सकती है, खासकर जब चुनावी परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं आते।
अब देखना यह होगा कि ‘जन सुराज’ इन चुनौतियों का सामना कैसे करती है। क्या पार्टी अपने संगठनात्मक ढांचे को सुधार पाएगी और आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत कर पाएगी? क्या प्रशांत किशोर अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव करेंगे? या फिर पार्टी को और भी बडे़ झटके मिल सकते हैं?
एक बात तो साफ है कि बिहार की राजनीति में जन सुराज पार्टी के बारे में आने वाले समय में और भी दिलचस्प घटनाएं हो सकती हैं।