Classical Indian languages: केंद्र ने पांच और भाषाओं को दिया शास्त्रीय दर्जा, शास्त्रीय भारतीय भाषाओं की संख्या हुई अब 11

Classical Indian languages: केंद्र ने पांच और भाषाओं को दिया शास्त्रीय दर्जा, शास्त्रीय भारतीय भाषाओं की संख्या हुई अब 11
Classical Indian languages: केंद्र ने पांच और भाषाओं को दिया शास्त्रीय दर्जा, शास्त्रीय भारतीय भाषाओं की संख्या हुई अब 11

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को मराठी और बंगाली समेत पांच और भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया। मंत्रिमंडल ने एक बयान में कहा कि शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक हैं, जो प्रत्येक समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मील के पत्थर का सार प्रस्तुत करती हैं। बंगाली और मराठी के अलावा पाली, प्राकृत और असमिया को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता दी गई है।

इस कदम के साथ, शास्त्रीय भारतीय भाषाओं की संख्या अब 11 हो गई है क्योंकि तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को पहले ही यह दर्जा मिल चुका है। मुझे बेहद खुशी है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा इसे मंजूरी दिए जाने के बाद अब असमिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिल जाएगा। असमिया संस्कृति सदियों से फलती-फूलती रही है और इसने हमें एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा दी है। यह भाषा और भी अधिक लोकप्रिय होती रहे…

मंत्रिमंडल ने कहा, “भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल करने से विशेष रूप से शैक्षणिक और शोध क्षेत्रों में महत्वपूर्ण रोजगार के अवसर पैदा होंगे।” साथ ही उन्होंने कहा कि इन भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेज़ीकरण और डिजिटलीकरण से संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोजगार पैदा होंगे।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने असमिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए पीएम मोदी और केंद्र को धन्यवाद दिया। सरमा ने एक्स पर लिखा, “असमिया अब एक शास्त्रीय भाषा है। असम के लोगों की ओर से मैं असमिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के ऐतिहासिक फैसले के लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी और पूरे केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रति आभार व्यक्त करता हूं। असमिया इस दर्जे का आनंद लेने वाली चुनिंदा भाषाओं के समूह में शामिल हो गई है।”

उन्होंने कहा, “यह असम की अनूठी सभ्यतागत जड़ों का उदाहरण है जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है। आज के फैसले से हम अपनी प्रिय मातृभाषा को बेहतर ढंग से संरक्षित करने में सक्षम होंगे, जो न केवल हमारे समाज को एकजुट करती है बल्कि असम के संतों, विचारकों, लेखकों और दार्शनिकों के प्राचीन ज्ञान से एक अटूट कड़ी भी बनाती है।”

Digikhabar Editorial Team
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