धर्म से दूरी लेकिन धर्म से ही चमकानी है राजनीति, राहुल-मोदी धर्म पर हुए आमने सामने

धर्म से दूरी लेकिन धर्म से ही चमकानी है राजनीति, राहुल-मोदी धर्म पर हुए आमने सामने
धर्म से दूरी लेकिन धर्म से ही चमकानी है राजनीति, राहुल-मोदी धर्म पर हुए आमने सामने

राजनीति के दावेदारों के पास लगता है अब कोई मुद्दा बचा नहीं है, चुनाव में तो राम राजनीति होती ही थी लेकिन अब संसद भी अछूता नहीं रहा है. बीजेपी राम की राजनीति कर के अपनी पार्टी चला रही और कांग्रेस जो आरोप लगाती थी की भाजपा धर्म की राजनीति करती है वो अब खुद धर्म की राजनीति करने लगी है. लेकिन सभी पार्टियों को ये जानना आवश्यक है की श्री राम और शिव राजनीति के कभी विषय नहीं हो सकते। दरअसल सोमवार को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा केंद्र पर हमला करने के लिए भगवान शिव की तस्वीर का इस्तेमाल करने पर विवाद खड़ा हो गया।

कांग्रेस नेता ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि जो लोग खुद को हिंदू कहते हैं, वे चौबीसों घंटे “हिंसा और नफरत” में लगे रहते हैं। इस बीच, स्पीकर ओम बिरला ने राहुल से कहा कि वह लोकसभा में तस्वीर न दिखाएं। बिरला ने सोमवार को इस बात से भी इनकार किया कि सदन में विपक्षी सदस्यों के माइक्रोफोन बंद किए जा रहे हैं। लेकिन हुआ क्या? और बिरला ने राहुल से तस्वीर न दिखाने को क्यों कहा?

आइए इस पर करीब से नज़र डालें:

राहुल ने सोमवार को केंद्र पर ‘भारत के विचार और संविधान पर और संविधान पर हमले का विरोध करने वालों पर पूर्ण पैमाने पर हमला’ करने का आरोप लगाया। राहुल ने भगवान शिव की एक छवि भी दिखाते हुए कहा कि विपक्ष को ‘उनसे शक्ति’ मिलती है और ‘शक्ति से बढ़कर भी कुछ है।’ इसके बाद स्पीकर ओम बिरला ने राहुल को याद दिलाया कि सदन के नियम प्लेकार्ड दिखाने की अनुमति नहीं देते हैं।

लोकसभा सचिवालय ने 2022 में एक एडवाइजरी जारी की थी जिसमें कहा गया था कि “स्थापित परंपरा के अनुसार, सदन के परिसर में माननीय अध्यक्ष की पूर्व अनुमति के बिना कोई भी साहित्य, प्रश्नावली, पर्चे, प्रेस नोट, पत्रक या कोई भी मुद्रित या अन्यथा सामग्री वितरित नहीं की जानी चाहिए।

संसद भवन परिसर के अंदर तख्तियां ले जाने पर भी सख्त पाबंदी है। राहुल ने कहा कि वह यह तस्वीर इसलिए दिखाना चाहते हैं क्योंकि इसमें ऐसे विचार हैं जिनका वह और विपक्ष बचाव करते हैं। राहुल ने कहा, “हम जिस तस्वीर का बचाव कर रहे हैं, उसमें सबसे पहला विचार डर का सामना करने और कभी डरने का नहीं है।” राहुल ने कहा कि उनका संदेश निर्भयता और अहिंसा के बारे में है। उन्होंने इसी तरह की बात कहने के लिए अन्य धर्मों की शिक्षाओं का भी हवाला दिया।

उन्होंने कहा, “सभी धर्म और हमारे सभी महापुरुष अहिंसा और निर्भयता की बात करते हैं, लेकिन जो लोग खुद को हिंदू कहते हैं, वे केवल हिंसा, घृणा और झूठ की बात करते हैं… आप हिंदू हो ही नहीं।” राहुल के इस हमले से सत्ता पक्ष के लोग खड़े हो गए।

इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि “पूरे हिंदू समुदाय को हिंसक कहना बहुत गंभीर मामला है।” गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस नेता से सदन और देश से माफी मांगने को कहा, क्योंकि उन्होंने खुद को हिंदू मानने वाले करोड़ों लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। शाह ने राहुल पर पलटवार करते हुए आपातकाल और 1984 के सिख विरोधी दंगों का जिक्र किया और कहा कि जब कांग्रेस ने देश में ‘आतंक’ फैलाया था, तो उन्हें अहिंसा की बात करने का कोई अधिकार नहीं है।

किन बयानों को हटाया गया?

राहुल गांधी ने हिन्दुओं पर जो बयान दिया था उसे रिकॉर्ड से हटा दिया गया है। इसके साथ ही उनके हिन्दू धर्म के ठेके वाले बयान को भी हटा दिया गया है। साथ ही अग्निवीर को पीएम से जोड़ने वाले बयान को भी रिकॉर्ड से हटा दिया गया है। वहीं, लोकसभा में राहुल ने संविधान को लेकर बयान दिया था इसे भी संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया गया है। राहुल ने अपने भाषण के दौरान हिंदुओं को लेकर बड़ा बयान दिया था। उन्होंने सत्ता पक्ष के हिन्दू ना होने का दावा किया था। राहुल के इस बयान को भी रिकॉर्ड से हटा दिया गया है। इसके साथ ही राहुल ने बीजेपी पर नफरत फैलाने वाला कहा था। राहुल के इस बयान को भी रिकॉर्ड से हटा दिया गया है।

पीएम मोदी ने क्या कहा था?

लोकसभा में राहुल गांधी की बयानबाजी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए थे और राहुल गांधी को फटकार लगाई थी। पीएम मोदी ने राहुल गांधी पर हमला करते हुए कहा था कि पूरे हिंदू समुदाय को हिंसक कहना बहुत गंभीर मामला है। पीएम मोदी ने कहा था कि लोकतंत्र और संविधान ने मुझे सिखाया है कि मुझे विपक्ष के नेता को गंभीरता से लेना चाहिए।

क्या बोले राहुल गांधी?

वहीं, अपने भाषण के हटाए गए अंशों पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि मोदी जी की दुनिया में सच्चाई को मिटाया जा सकता है लेकिन हकीकत में सच्चाई को मिटाया नहीं जा सकता है। जो मैंने कहा और जो मुझे कहना था मैंने कह दिया, वह सच्चाई है, अब उन्हें जो मिटाना है मिटाएं।

लेकिन एक बात गौर करने वाली थी कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की स्पीच के दौरान नियम 349, 352, 151 और 102 समेत कई नियमों का जिक्र हुआ. ऐसे में जानते हैं कि संसद में भाषण देते समय किन नियमों को ध्यान में रखना होता है?

क्या कहता है नियम 356?

राहुल गांधी के भाषण के दौरान नियम 356 का भी जिक्र हुआ. केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के सामने नियम 356 का हवाला दिया. ये नियम कहता है कि अगर कोई सदस्य भाषण के दौरान बार-बार असंगत बात कर रहा हो तो स्पीकर उसे अपना भाषण बंद करने का निर्देश दे सकते हैं.

लोकसभा की रूल बुक में नियम 349 से लेकर 356 तक संसद में भाषण देते वक्त किन बातों का ध्यान रखना है, इसका जिक्र किया गया है.

नियम 349 (1) कहता है कि भाषण के दौरान ऐसी किसी किताब, अखबार या पत्र नहीं पढ़ा जा सकता, जिसका सदन की कार्यवाही से कोई संबंध न हो. नियम 349 (2) कहता है कि किसी सदस्य के भाषण देते वक्त शोरशराबा या किसी भी तरीके से बाधा नहीं डाली जा सकती.

नियम 349 (12) में लिखा है कि कोई भी सदस्य स्पीकर की कुर्सी की ओर पीठ करके न तो बैठेगा और न ही खड़ा होगा.

इसी रूल बुक का नियम 349 (16) कहता है कि सदन में कोई भी सदस्य झंडा, प्रतीक या कोई भी चीज प्रदर्शित नहीं करेगा. राहुल गांधी की ओर से भगवान शिव की तस्वीर दिखाने पर स्पीकर ओम बिरला ने इसी नियम का हवाला दिया था. रूल बुक के नियम 352 में उन नियमों का जिक्र है, जिनका हर सदस्य को बोलते समय ध्यान रखना जरूरी है.

नियम 352(1) कहता है कि कोई भी सदस्य भाषण देते वक्त ऐसे तथ्य या निर्देश का जिक्र नहीं करेगा, जो किसी अदालत के सामने लंबित हो. 352(2) के तहत, किसी सदस्य पर पर्सनल अटैक नहीं किया जा सकता.

नियम 352(3) के मुताबिक, कोई भी सदस्य सदन या किसी राज्य की विधानसभा की कार्यवाही को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी नहीं करेगा. नियम 352(5) के तहत, ऊंचे पद पर बैठे किसी व्यक्ति के खिलाफ आपत्तिजनक या अपमानजनक टिप्पणी नहीं की जा सकती.

रूल बुल का नियम 352 (6) कहता है कि कोई भी सदस्य बहस या चर्चा के दौरान राष्ट्रपति के नाम का भी इस्तेमाल नहीं कर सकता. इतना ही नहीं, किसी सरकारी अधिकारी के नाम का भी जिक्र नहीं कर सकते. नियम 352 (11) के मुताबिक, कोई भी सदस्य स्पीकर की अनुमति के बगैर कोई भी लिखित भाषण नहीं पढ़ सकता.

क्या-क्या नहीं कर सकता सांसद?

रूल बुल का नियम 353 कहता है कि कोई भी सदस्य किसी व्यक्ति के खिलाफ तब तक कोई अपमानजनक टिप्पणी या आरोप नहीं लगाएगा, जब तक स्पीकर की मंजूरी न हो.

नियम 354 के मुताबिक, कोई भी सदस्य राज्यसभा में दिए भाषण का जिक्र लोकसभा में तब तक नहीं करेगा, जब तक वो किसी मंत्री की ओर से न दिया गया हो या फिर किसी नीति से जुड़ा न हो. वहीं, नियम 355 कहता है कि अगर चर्चा के दौरान कोई सदस्य किसी सदस्य से कोई सवाल पूछना चाहता है तो वो स्पीकर के माध्यम से ही सवाल कर सकता है.

क्या कहता है नियम 356?

राहुल गांधी के भाषण के दौरान नियम 356 का भी जिक्र हुआ. केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के सामने नियम 356 का हवाला दिया. ये नियम कहता है कि अगर कोई सदस्य भाषण के दौरान बार-बार असंगत बात कर रहा हो तो स्पीकर उसे अपना भाषण बंद करने का निर्देश दे सकते हैं.

Digikhabar Editorial Team
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