फिल्म निर्माता एकता कपूर ने कल इंस्टाग्राम पर अपने विचार व्यक्त करते हुए भारतीय कंटेंट की आलोचना की, जो अक्सर कहा जाता है कि यह वैश्विक मानकों पर खरा नहीं उतरता। उन्होंने इन आलोचनाओं के पीछे के कारणों पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या यह वास्तविक चिंता का परिणाम हैं या फिर यह केवल कुंठित अहंकार और गलत आरोपों का नतीजा है।
कॉर्पोरेट दबाव और कला की कीमत
एकता कपूर ने फिल्म इंडस्ट्री में व्यावसायिक दबावों पर भी बात की, जो उनके अनुसार, कंटेंट निर्माण की कला को प्रभावित करते हैं। उन्होंने ‘पैसे के लिए भूखी कंपनियों और ऐप्स’ को निशाने पर लिया, जो लाभ को कला पर प्राथमिकता देते हैं। हालांकि, उन्होंने खुद इस सिस्टम का हिस्सा होने की बात भी मानी।
साथ ही एकता कपूर ने निर्माता-निर्देशकों से अपील की कि वे अपने प्रोजेक्ट्स में व्यक्तिगत निवेश करें और कला को प्राथमिकता दें, हालांकि उन्होंने अपनी बात में व्यंग्य भी किया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे हंसराज मेहता की ‘द बकिंघम मर्डर्स’ और ‘सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’ जैसी फिल्में थिएटरों में दर्शकों को आकर्षित करने में विफल रही हैं। एकता कपूर ने दर्शकों की भूमिका पर भी सवाल उठाया और कहा कि भारतीय दर्शक भी सिनेमा की स्थिति के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार हैं, क्योंकि उनकी प्राथमिकताएं और स्वाद अभी भी विकसित हो रहे हैं। एकता कपूर ने सिनेमा के इस मुद्दे को और स्पष्ट करते हुए महान फिल्म निर्माता सत्यजीत रे का हवाला दिया और बताया कि बड़े भारतीय दर्शकों की सिनेमा की समझ अब भी सीमित है, भले ही फिल्म सोसाइटी मूवमेंट जैसे प्रयास किए गए हों।
एकता कपूर ने अपनी टिप्पणी के जरिए यह बहस शुरू की है कि क्या समस्या फिल्म स्टूडियो और स्ट्रीमिंग प्लेटफार्मों की है, जो कंटेंट का निर्माण तय करते हैं, या फिर दर्शकों की पसंद है, जो यह तय करते हैं कि क्या सफल होगा। उनकी यह पहल फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों को कला और व्यापार के बीच संतुलन पर नए सिरे से विचार करने का अवसर देती है।