
राज्य में मानसून की पहली तेज़ बारिश 20 जून से शुरू हुई, लेकिन 30 जून–4 जुलाई के बीच भारी वर्षा ने सबसे अधिक तबाही मचाई। सामान्य मौसम से कई गुना तेज बारिश के कारण भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ की घटनाएँ हुईं।
मृत्यु और सुरक्षित बचाव:
प्राधिकरणों के अनुसार, अब तक 37 लोग मारे गए हैं। एक अन्य रिपोर्ट में 63 मौतों का आंकड़ा भी सामने आया, जिसमें 26 लोग सिर्फ सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं। मंडी जिले में एक साथ ही 40 से अधिक लोग लापता हैं।
आर्थिक और अवसंरचना हानि:
राज्य आपदा प्रबंधन ने बताया कि राज्य में संपत्ति का नुकसान ₹400 करोड़ से अधिक है। इसमें 250 से अधिक सड़कें बंद हुईं, 500 से अधिक ट्रांसफॉर्मर खराब हुए, और 700 से ज्यादा पेयजल योजनाएं प्रभावित हुईं। मंडी में पुल, सार्वजनिक भवन और खेत खत्म हो गए।
वाहन और राहत कार्य:
रिहाई एवं बचाव अभियान में SDRF, NDRF, पुलिस, स्थानीय प्रशासन और भारतीय एयरफोर्स शामिल हैं। मंडी के थुनाग उप-विभाग में राहत शिविर स्थापित किया गया, जहां एयरड्रॉप से खाना पहुंचाया गया।
एमआईडी की चेतावनी:
मौसम विभाग ने हिमाचल में अगले 7 जुलाई तक अधिक बारिश की चेतावनी जारी की है, ‘रेड ऑरेंज’ अलर्ट के तहत लोग सतर्क रहने को कहा गया है।
छात्रों की परेशानी:
भारी बारिश का असर न सिर्फ सड़कों और संपत्तियों पर पड़ा है, बल्कि बच्चों की शिक्षा पर भी गहरा प्रभाव डाला है। शिमला, मंडी और कुल्लू जिलों में कई सरकारी और निजी स्कूलों की इमारतें बाढ़ के पानी से भर गई हैं। कई स्कूलों की कक्षाएं पूरी तरह पानी में डूब गईं, जिससे बेंच, डेस्क और लाइब्रेरी की किताबें खराब हो गईं। एक स्थानीय छात्रा ने NDTV से कहा:
हमारी क्लास में पानी भर गया है, किताबें भीग गई हैं। डर लगता है कि पेड़ कहीं गिर न जाएँ। हमें छुट्टी दे दी गई है लेकिन घर पहुंचने में भी डर लग रहा है।
कई स्कूलों के बाथरूम, बिजली के मीटर और स्टोर रूम में पानी घुस गया है, जिससे स्कूल प्रबंधन ने छात्रों को अस्थायी रूप से छुट्टियाँ दे दी हैं। अभिभावकों का कहना है कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर बहुत चिंता है। कुछ स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाओं का विकल्प अपनाने की कोशिश की है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क और बिजली की समस्या अभी भी बड़ी बाधा है। कुछ इलाकों में स्कूल बसें भी कीचड़ में फंसी रहीं, और कई रास्ते कट जाने के कारण छात्रों और शिक्षकों का आना-जाना मुश्किल हो गया है।
जलवायु संकट के संकेत: हिमाचल की बारिश महज प्राकृतिक आपदा नहीं
हिमाचल प्रदेश में आई यह विनाशकारी बारिश सिर्फ एक सामान्य मानसून घटना नहीं मानी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का सीधा नतीजा है। राज्य आपदा प्रबंधन निदेशक डी.सी. राणा ने कहा,
इस बार जो हालात बने हैं, वह आम बारिश से कहीं ज़्यादा हैं। अचानक भारी वर्षा, बादल फटना, और मूसलधार बारिश की आवृत्ति बढ़ती जा रही है। यह ग्लोबल वार्मिंग का साफ संकेत है।
पिछले कुछ वर्षों में हिमाचल और उत्तर भारत के पहाड़ी राज्यों में बेमौसम बारिश, लंबे समय तक सूखा और फिर अचानक अत्यधिक वर्षा की घटनाएं बढ़ी हैं।
इससे न केवल पर्यावरण संतुलन बिगड़ा है, बल्कि किसानों, पर्यटन व्यवसायियों और आम नागरिकों के जीवन पर भी गंभीर असर पड़ा है।
IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट के अनुसार,
भारत के हिमालयी क्षेत्र “climate hotspots” बनते जा रहे हैं, जहां तापमान वृद्धि, ग्लेशियर पिघलना, और असमय बारिश जैसे खतरनाक बदलाव दिख रहे हैं।
इस आपदा ने एक बार फिर दिखा दिया कि जलवायु परिवर्तन अब दूर की चेतावनी नहीं, हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे चुका है। हिमाचल की त्रासदी सिर्फ राहत कार्यों से नहीं सुलझेगी, हमें सतर्कता, दीर्घकालीन नीति, और प्रकृति के साथ तालमेल की ज़रूरत है। वरना ऐसी घटनाएं और भी गंभीर रूप ले सकती हैं।