असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मंगलवार को भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा आयोजित ‘शहादत दिवस’ कार्यक्रम में इजरायल के राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया से असम के युवाओं को प्रेरित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि असम को इजरायल के इतिहास से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है, क्योंकि एक छोटा सा देश होने के बावजूद इजरायल ने अपने संघर्ष और तकनीकी दक्षता से खुद को एक शक्तिशाली और अजेय राष्ट्र बना लिया।
मुख्यमंत्री सरमा ने अपने संबोधन में कहा, “मैं असम के युवाओं से आग्रह करता हूं कि वे इजरायल के इतिहास का अध्ययन करें। इजरायल ने जिस प्रकार से अत्यधिक मुश्किलों और युद्धों के बावजूद अपने देश को मजबूत किया, वह प्रेरणादायक है। इजरायल जैसे देशों का इतिहास हमें यह सिखाता है कि तकनीकी, विज्ञान और कठोर परिश्रम से किसी भी राष्ट्र को मजबूत और सुरक्षित बनाया जा सकता है, भले ही वह दुश्मनों से घिरा हो।”
सरमा ने आगे कहा, “इजरायल ने जिस तरह से हर चुनौतियों का सामना करते हुए खुद को एक ताकतवर राष्ट्र के रूप में स्थापित किया, उसी तरह हमें भी असम के युवाओं को प्रेरित करने के लिए दृढ़ और साहसी बनना होगा। लचित बोरफुकन, कनकलता और खड़गेश्वर तालुकदार जैसे वीरों की वीरता से हमें यह सिखने की जरूरत है कि कैसे अपनी पहचान और भूमि की रक्षा की जाए।”
असम की सीमाओं पर चिंता
मुख्यमंत्री ने राज्य की सीमाओं को लेकर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि असम की सीमाएं बांग्लादेश, म्यांमार और पश्चिम बंगाल से मिलती हैं, और इस वजह से असम के असमिया लोग राज्य के 12 जिलों में अल्पसंख्यक बन गए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य के जनसांख्यिकी में निरंतर बदलाव हो रहे हैं, और स्वदेशी लोग अपनी जमीन के अधिकार खो रहे हैं।
सरमा ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस ने असमिया लोगों को कमजोर करने का काम किया है, और राज्य में बाहरी लोगों से होने वाले खतरे को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि असम समझौते के 40 साल बाद भी यह खतरा बरकरार है और असमिया लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जनसांख्यिकीय संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
असमिया समाज के आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि असमिया लोग अब अपनी परंपरागत नौकरियों से मुंह मोड़ने लगे हैं, जैसे खेती, रिक्शा चलाना और बस चलाना, और इसके स्थान पर बाहरी लोगों को इन कार्यों में शामिल कर लिया गया है। उन्होंने जोर दिया कि केवल भावनाओं से समुदाय का निर्माण नहीं हो सकता, बल्कि लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए व्यावहारिक कदम उठाए जाने चाहिए।
“शहादत दिवस” और खड़गेश्वर तालुकदार की शहादत
यह कार्यक्रम असम आंदोलन के पहले शहीद खड़गेश्वर तालुकदार की पुण्यतिथि पर मनाया गया, जिन्होंने असम समझौते से पहले 1985 में अपनी जान दी थी। सरमा ने इस अवसर पर खड़गेश्वर तालुकदार की शहादत को याद करते हुए असम आंदोलन की वीरता को सलाम किया, जो असमिया पहचान और असम की भूमि के अधिकार की रक्षा के लिए लड़ा गया था।
इस प्रकार, मुख्यमंत्री ने असम के लोगों से आग्रह किया कि वे इजरायल के राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया से प्रेरणा लेकर अपनी जड़ों को मजबूत करें और एक साहसी, आत्मनिर्भर और सुरक्षित असम की दिशा में कदम बढ़ाएं।