कोलकाता: पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 34 वर्षीय राजीब घोष को फांसी की सजा सुनाई है। दोषी ने सात महीने की मासूम बच्ची का अपहरण कर उसके साथ दुष्कर्म किया था, जिसके चलते अदालत ने इस मामले को “दुर्लभ से दुर्लभतम” (rarest of rare) करार दिया।
जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही बच्ची
यह वीभत्स घटना पिछले नवंबर में घटी थी, जब बच्ची को उसके माता-पिता के पास से उत्तर कोलकाता की एक फुटपाथ से अगवा किया गया था। इस घिनौनी हरकत के बाद बच्ची को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वह आज भी जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है।
हालांकि, पीड़िता के जीवित होने के बावजूद अदालत ने फांसी की सजा सुनाई, यह मानते हुए कि बच्ची को जीवनभर मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ेगी।
अदालत में अभियोजन पक्ष ने रखी कड़ी दलीलें
अदालत में अभियोजन पक्ष का नेतृत्व कर रहे वकील विवास चटर्जी ने POCSO एक्ट के तहत दोषी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि कानून में मृत्यु को अनिवार्य शर्त नहीं माना गया है, बल्कि अपराध की नृशंसता और पीड़िता के भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए फांसी की सजा दी जा सकती है।
“बच्ची जीवन के लिए संघर्ष कर रही है। यदि वह शारीरिक रूप से ठीक भी हो जाती है, तो भी मानसिक आघात उसे ताउम्र परेशान करेगा,” चटर्जी ने अदालत में दलील दी।
इस जघन्य अपराध की गहन जांच में कोलकाता पुलिस ने CCTV फुटेज, फॉरेंसिक साक्ष्य और डिजिटल लोकेशन ट्रैकिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया।
CCTV विश्लेषण: हजारों घंटे के CCTV फुटेज की समीक्षा कर पुलिस ने राजीब घोष की हरकतों और अपराध स्थल पर उसकी उपस्थिति साबित की।
डेंटल इम्प्रेशन: बच्ची के चेहरे पर दांतों के निशान पाए गए, जो घोष के डेंटल इम्प्रेशन से मेल खाते थे।
DNA सबूत: फॉरेंसिक जांच में घोष के डीएनए की पुष्टि बच्ची के कपड़ों पर मिले वीर्य और रक्त के नमूनों से हुई।
डिजिटल ट्रैकिंग: अपराध के समय घोष की मोबाइल लोकेशन Google मैपिंग डेटा से घटनास्थल के पास पाई गई।
इन सभी सबूतों के आधार पर अदालत ने घोष को निर्दोष साबित करने की किसी भी संभावना को खारिज कर दिया और सर्वोच्च दंड सुनाया।
न्याय का बड़ा संदेश
कोलकाता की POCSO अदालत का यह निर्णय न्याय व्यवस्था में लोगों के भरोसे को मजबूत करता है। यह फैसला बलात्कार और बच्चों पर अत्याचार करने वालों के लिए कड़ा संदेश भी है कि ऐसे अपराधों के लिए कोई माफी नहीं होगी।
हालांकि, इस मामले ने एक बार फिर बच्चों की सुरक्षा, फुटपाथ पर रहने वाले परिवारों की दयनीय स्थिति और समाज में जागरूकता की जरूरत को उजागर किया है।
अब पूरा देश इस फैसले पर नजर रखे हुए है कि क्या उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय भी इसे बरकरार रखेंगे या कोई कानूनी चुनौती सामने आएगी। लेकिन फिलहाल, इस फैसले को न्याय की जीत के रूप में देखा जा रहा है।