राज्यसभा में विपक्षी दलों ने एक बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। विपक्षी गठबंधन ने इस प्रस्ताव पर 60 सदस्यों के हस्ताक्षर भी करवा लिए हैं और इसे राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को सौंप दिया है। हालांकि, यह बात गौर करने वाली है कि कांग्रेस या किसी प्रमुख विपक्षी दल के फ्लोर लीडर ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
क्या धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो पाएगा?
राज्यसभा में कुल 237 सदस्य हैं, और 60 सदस्यों के हस्ताक्षर के बावजूद, अविश्वास प्रस्ताव का पारित होना आसान नहीं है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को समर्थन प्राप्त है, और हाल ही में उन्होंने 12 और सदस्यों को अपने साथ जोड़कर राज्यसभा में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। अब एनडीए के पास कुल 119 सदस्य हैं, जबकि विपक्ष के पास सिर्फ 60 सदस्य हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या इन संख्याओं के बीच अविश्वास प्रस्ताव सफल हो पाएगा?
विपक्षी दलों का क्या है योगदान?
विपक्षी दलों में कांग्रेस के पास फिलहाल राज्यसभा में 26 सदस्य हैं। विपक्ष के नेता का पद पाने के लिए किसी पार्टी के पास कम से कम 25 सदस्य होने चाहिए, इस लिहाज से कांग्रेस इस पद के कगार पर है। हालांकि, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने मिलकर इस अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन उनके पास आवश्यक समर्थन नहीं है, जिससे प्रस्ताव पारित होने की संभावना कम नजर आती है।
राज्यसभा के भविष्य में क्या बोगा बदलाव
राज्यसभा के सदस्यत्व में बदलाव की संभावना फिलहाल कम दिखती है, क्योंकि अगला चुनाव नवंबर 2024 में होगा, जिसमें उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 11 सदस्य रिटायर होंगे। इनमें से अधिकांश भाजपा के सदस्य हैं, जिससे एनडीए की स्थिति में कोई खास बदलाव की उम्मीद नहीं है।
विधायिका में विरोध
राज्यसभा में अक्सर सत्ताधारी और विपक्षी दलों से अलग खड़े रहे वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल अब विपक्षी दलों के करीब आ गए हैं। हालांकि, ये दल आमतौर पर सरकार के पक्ष में खड़े रहते हैं, लेकिन अब दोनों दलों ने विपक्षी दलों के साथ मिलकर कुछ रणनीतिक कदम उठाए हैं।
उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभापति पद से हटाना इतना आसान नहीं है। इसके लिए एक लंबी प्रक्रिया है, जो भारतीय संविधान के आर्टिकल 67(बी) में निर्धारित की गई है। इसके तहत, उपराष्ट्रपति को केवल राज्यसभा के सदस्य और लोकसभा के समर्थन से पद से हटाया जा सकता है। इसके लिए पहले 14 दिन का नोटिस दिया जाता है, और फिर राज्यसभा में प्रभावी बहुमत से प्रस्ताव पास किया जाता है। लोकसभा में इसे साधारण बहुमत से अनुमोदन प्राप्त करना होता है।
क्या कहते हैं नियम
1-उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए प्रस्ताव सिर्फ राज्यसभा में ही पेश किया जाता है. इसे लोकसभा में नहीं पेश कर सकते हैं.
2-आर्टिकल 67(बी) कहता है कि 14 दिन पहले नोटिस देने के बाद ही प्रस्ताव पेश किया जा सकता है.
3-राज्यसभा में प्रस्ताव को प्रभावी बहुमत के जरिए पारित करना होगा और लोकसभा में इसके लिए साधारण बहुमत से सहमति जरूरी है.
4-नियम ये भी कहते हैं कि जब प्रस्ताव विचाराधीन हो तो सभापति सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते हैं.
इस प्रकार, विपक्ष ने एक बड़ा कदम उठाया है, लेकिन उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए जिस प्रक्रिया की आवश्यकता है, वह काफी जटिल और लंबी है। अब देखना यह होगा कि विपक्ष अपनी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए इस प्रस्ताव को सफल बना पाता है या नहीं।