जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू, संसद में 145 सांसदों ने सौंपा ज्ञापन

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू, संसद में 145 सांसदों ने सौंपा ज्ञापन
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू, संसद में 145 सांसदों ने सौंपा ज्ञापन

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया सोमवार दोपहर से औपचारिक रूप से शुरू हो गई। यह कदम उस समय उठाया गया जब उनके आवास से जले हुए 500 रुपये के नोटों के ढेर बरामद किए गए, जिसके बाद यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गया।

लोकसभा अध्यक्ष को सौंपा गया ज्ञापन

सोमवार को सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के कुल 145 सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की मांग की गई। कांग्रेस, भाकपा (माकपा) सहित कई विपक्षी दलों के नेताओं ने इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।

सूत्रों के अनुसार, ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राकांपा की सुप्रिया सुले, पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर (भाजपा) जैसे प्रमुख नेता शामिल हैं।

बीजेपी सांसद भी आए समर्थन में

चौंकाने वाली बात यह रही कि इस महाभियोग प्रस्ताव को सिर्फ विपक्ष ही नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दलों जैसे तेलुगु देशम पार्टी, जनता दल यूनाइटेड और जेडीएस के सांसदों का भी समर्थन प्राप्त हुआ है।

स्वतंत्र भारत में पहली बार

यह मामला इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार है जब किसी कार्यरत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई है। अब इस मामले की जांच भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत की जाएगी।

क्या होता है महाभियोग?

महाभियोग वह संवैधानिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसके पद से हटाया जा सकता है। एक बार नियुक्त होने के बाद, किसी न्यायाधीश को राष्ट्रपति के आदेश के बिना नहीं हटाया जा सकता, और उसके लिए संसद की दोनों सदनों की सहमति आवश्यक होती है।

हालांकि भारतीय संविधान में “महाभियोग” शब्द का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन इसकी प्रक्रिया को “जजेज इंक्वायरी एक्ट, 1968” में विस्तार से बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए अनुच्छेद 124, और उच्च न्यायालयों के लिए अनुच्छेद 218 में संबंधित प्रावधान शामिल हैं।

आगे की प्रक्रिया

अब लोकसभा अध्यक्ष द्वारा इस प्रस्ताव की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति गठित की जा सकती है, जो न्यायाधीश के आचरण की समीक्षा करेगी। जांच रिपोर्ट के आधार पर ही संसद में प्रस्ताव पर मतदान कराया जाएगा। यदि दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होता है, तो राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश जारी कर सकते हैं।

जस्टिस वर्मा का मामला भारतीय न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। अब निगाहें संसद की कार्यवाही और जांच समिति की रिपोर्ट पर टिकी हैं।