नई दिल्ली: वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के हालिया बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। सिब्बल ने शुक्रवार को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उन्हें धनखड़ जी के न्यायपालिका पर दिए बयान से दुख और आश्चर्य हुआ। उन्होंने आरोप लगाया कि जब सरकार को न्यायपालिका के फैसले पसंद नहीं आते, तब वह उसकी आलोचना करने लगती है।
सिब्बल ने कहा, “उप राष्ट्रपति को यह समझना चाहिए कि राष्ट्रपति और राज्यपाल मंत्रियों की सलाह पर कार्य करते हैं। अगर कोई मंत्री दो साल तक राज्यपाल से सवाल पूछे तो क्या राज्यपाल अनदेखी कर सकते हैं? यह विधायिका की सर्वोच्चता में हस्तक्षेप है।”
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का कोई व्यक्तिगत अधिकार नहीं होता, वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैं। “जब संसद कोई बिल पास करती है तो क्या राष्ट्रपति उसे अनिश्चितकाल तक रोके रख सकते हैं? यह तो उल्टी बात है,” सिब्बल ने कहा।
धनखड़ के बयानों पर गहरी आपत्ति
उप राष्ट्रपति ने हाल ही में कहा था कि कुछ न्यायाधीश ‘कानून बना रहे हैं’, ‘कार्यपालिका का काम कर रहे हैं’ और ‘सुपर संसद’ की तरह बर्ताव कर रहे हैं। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि कैसे सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश दे सकता है।
इस पर सिब्बल ने जवाब दिया, “क्या उप राष्ट्रपति जानते हैं कि संविधान ने अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय देने का अधिकार दिया है? यह संविधान की व्यवस्था है।”
सुप्रीम कोर्ट की पीठ की संख्या को लेकर भी विवाद
धनखड़ ने यह भी कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 145(3) के तहत, संविधान की व्याख्या से जुड़ी किसी भी याचिका पर निर्णय कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ को देना चाहिए। उन्होंने हाल की एक दो-जजों की पीठ के फैसले पर आपत्ति जताई।
इस पर सिब्बल ने याद दिलाया कि इंदिरा गांधी के चुनाव से जुड़ा ऐतिहासिक फैसला सिर्फ एक न्यायाधीश द्वारा दिया गया था। “जब इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द हुआ था, तो वह फैसला जस्टिस कृष्ण अय्यर ने अकेले दिया था। तब क्या वह फैसला सही था, क्योंकि वह सरकार के पक्ष में नहीं था?” उन्होंने सवाल उठाया।
मेघवाल और रिजिजू पर भी साधा निशाना
कपिल सिब्बल ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और किरेन रिजिजू की टिप्पणियों पर भी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि कभी कहा जाता है कि ‘मर्यादा में रहना चाहिए’, तो कभी पूछा जाता है कि ‘अगर हम भी ऐसा करें तो क्या होगा’। सिब्बल ने अंत में कहा कि लोकतंत्र और न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है, और न्यायालयों के निर्णयों का पालन करना सभी को करना चाहिए।