नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे ने शुक्रवार को कांग्रेस और राहुल गांधी पर तीखा हमला बोला और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर आलोचना को “दोहरे मापदंड” करार दिया। उन्होंने 1991 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए एक सैन्य पारदर्शिता समझौते का हवाला देते हुए कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया।
दुबे ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट में लिखा,
“राहुल गांधी जी, 1991 में आपकी पार्टी द्वारा समर्थित सरकार के दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य गतिविधियों की जानकारी साझा करने का समझौता हुआ था। क्या आप अब उसे भी देशद्रोह कहेंगे?”
1991 समझौते का ज़िक्र
निशिकांत दुबे ने जिस समझौते का ज़िक्र किया, वह 6 अप्रैल 1991 को नई दिल्ली में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ “एडवांस नोटिस ऑफ मिलिट्री एक्सरसाइज़ेज़, मैनूवर्स एंड ट्रूप मूवमेंट्स” समझौता था। इसका मकसद सीमा पर सैन्य गतिविधियों में पारदर्शिता लाकर गलतफहमी या अनजाने में टकराव को रोकना था।
मुख्य प्रावधान:
- पूर्व सूचना: दोनों देशों को सीमा के पास होने वाले सैन्य अभ्यास या सेना की तैनाती के बारे में पहले से सूचना देनी थी।
- डिप्लोमैटिक चैनल: यह सूचना राजनयिक माध्यमों से निर्धारित समयसीमा में साझा की जाती थी।
- सीमा से दूरी: समझौते में यह भी तय था कि ऐसी सैन्य गतिविधियाँ सीमा से एक निश्चित दूरी पर ही होंगी।
- रणनीतिक दिशा: किसी भी अभ्यास की रणनीति दूसरे देश की ओर उन्मुख नहीं होनी चाहिए।
यह समझौता भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के उपायों (Confidence Building Measures) का हिस्सा था, जिनमें 1991 का एयरस्पेस उल्लंघन समझौता और 1992 में परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमले की रोकथाम वाला समझौता भी शामिल है।
ऑपरेशन सिंदूर पर राहुल गांधी का आरोप
दुबे की यह प्रतिक्रिया उस समय आई जब राहुल गांधी ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर पर गंभीर आरोप लगाए। राहुल ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान को पहले से सूचना मिलने के कारण भारत को एयरक्राफ्ट का नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने एक्स पर लिखा:
“विदेश मंत्री जयशंकर की चुप्पी सिर्फ़ बोलती नहीं है, बल्कि दोष सिद्ध करती है। मैं फिर पूछता हूं — पाकिस्तान को जानकारी मिलने की वजह से कितने भारतीय एयरक्राफ्ट खोए? ये चूक नहीं, अपराध था। देश को सच्चाई जानने का हक़ है।”
कांग्रेस का पलटवार
कांग्रेस ने दुबे के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि फरवरी 1991 तक पार्टी ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और उस समय देश में सामान्य चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। पार्टी ने कहा कि भाजपा “बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है।”
राजनीतिक गर्मी बढ़ी
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच बयानबाज़ी ने एक बार फिर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों और राजनीतिक जवाबदेही पर बहस छेड़ दी है। जहां भाजपा इसे रणनीतिक पारदर्शिता बता रही है, वहीं कांग्रेस इसे गंभीर सुरक्षा चूक बता रही है। अब देखना होगा कि विदेश मंत्रालय और सरकार इस विवाद पर क्या स्थिति स्पष्ट करती है, और क्या इस मुद्दे पर कोई संसदीय बहस होती है या नहीं।