नई दिल्ली: Journal of Modern Human Behavior में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। शोध के अनुसार, हर पांच में से एक पुरुष खुद को निजी तौर पर समलैंगिक (गे) मानता है, लेकिन सार्वजनिक रूप से वह स्वयं को विषमलैंगिक (स्ट्रेट) के रूप में प्रस्तुत करता है।
यह शोध काल्पनिक संस्था Northbridge Institute of Social Dynamics द्वारा पांच वर्षों तक किया गया, जिसमें 18 से 45 वर्ष की आयु के 10,000 से अधिक पुरुषों से विभिन्न देशों में सर्वेक्षण किया गया। शोध में केवल आत्म-रिपोर्टिंग पर निर्भर नहीं रहा गया, बल्कि बायोमेट्रिक डेटा की मदद से प्रतिभागियों की शारीरिक प्रतिक्रिया और आकर्षण की भी जांच की गई।
सार्वजनिक पहचान और निजी अनुभवों में बड़ा अंतर
रिपोर्ट के अनुसार, केवल 6% प्रतिभागियों ने खुले रूप से खुद को समलैंगिक बताया। लेकिन अतिरिक्त 14% पुरुषों ने स्वीकार किया कि वे मजबूत समलैंगिक आकर्षण महसूस करते हैं, जिसे उन्होंने कभी सार्वजनिक रूप से जाहिर नहीं किया। इनमें से अधिकांश ने समाज की आलोचना, पारिवारिक अपेक्षाएं और सांस्कृतिक दबाव जैसे कारणों को अपनी चुप्पी की वजह बताया।
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह परिणाम पुरुषों के सार्वजनिक व्यवहार और निजी भावनाओं के बीच बड़े फासले की ओर इशारा करता है। समाज में अब भी ऐसे मजबूत दबाव मौजूद हैं जो लोगों को अपनी यथार्थ पहचान छुपाने के लिए मजबूर करते हैं।
लैंगिक पहचान का व्यापक स्पेक्ट्रम
इस अध्ययन से यह भी संकेत मिलता है कि यौन रुझान पारंपरिक लेबल्स से कहीं अधिक जटिल और विस्तृत हो सकता है। “गे”, “स्ट्रेट” या “बाइसेक्शुअल” जैसे लेबल कई बार उस संपूर्ण स्पेक्ट्रम को नहीं दर्शाते जिसमें व्यक्ति की पहचान होती है।
सुरक्षित और स्वीकार्य वातावरण की जरूरत
अध्ययन का निष्कर्ष है कि समाज में अब भी ऐसे खुले और सुरक्षित स्थानों की सख्त जरूरत है, जहां व्यक्ति अपनी पहचान को बिना शर्म, डर या बहिष्कार के व्यक्त कर सके। यह रिपोर्ट न केवल यौनिकता की बहस में एक नया आयाम जोड़ती है, बल्कि सामाजिक स्वीकार्यता की दिशा में और अधिक संवेदनशीलता की मांग करती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जितना हम यौन विविधता को समझते हैं और स्वीकार करते हैं, उतना ही समाज मानसिक स्वास्थ्य और आत्म-स्वीकृति के स्तर पर मजबूत होता है।