नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (16 जुलाई) को हरियाणा पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) को चेतावनी दी कि वे अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के खिलाफ जारी जांच का दायरा FIR के बाहर न बढ़ाएं। यह मामला प्रोफेसर की सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ा है, जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर किए गए थे।
अभिव्यक्ति की आज़ादी बरकरार, लेकिन सीमाएं तय
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता की पीठ ने स्पष्ट किया कि प्रोफेसर महमूदाबाद की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बरकरार है, लेकिन उन्हें चालू मामलों या FIR से जुड़े किसी भी मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करने की अनुमति नहीं दी गई है।
कोर्ट ने प्रोफेसर की अंतरिम जमानत बढ़ा दी, लेकिन उन पर लगाए गए प्रतिबंधों में कोई ढील नहीं दी। कोर्ट ने कहा, “उनकी अभिव्यक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन वे दर्ज FIRs या संबंधित मामलों पर कुछ नहीं कह सकते।”
जांच की सीमाएं तय, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त न करने की सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने SIT को निर्देश दिया कि वे केवल दो दर्ज FIRs के दायरे में रहकर ही जांच करें। कोर्ट ने हरियाणा सरकार के वकील से सवाल किया, “आपको उनके डिवाइस क्यों चाहिए? जांच सिर्फ दो FIR तक सीमित रहे – इधर-उधर न जाएं।”
SIT की रचना और जांच की समय-सीमा
कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, तीन सदस्यीय SIT का गठन पहले ही हो चुका है, जिसमें शामिल हैं:
- ममता सिंह, ADGP (क्राइम) एवं पुलिस आयुक्त, सोनीपत
- गंगाराम पुनिया, पुलिस अधीक्षक, करनाल
- विक्रांत भूषण, एसपी, STF, गुरुग्राम
SIT को चार सप्ताह में जांच पूरी कर रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट और संबंधित अदालत को सौंपने के निर्देश दिए गए हैं।
गिरफ्तारी और आरोप
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को 18 मई को हरियाणा के सोनीपत में दर्ज दो एफआईआर के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। ये FIRs उनके सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दर्ज की गईं थीं, जिसमें ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर किए गए बयानों को देश की एकता के लिए नुकसानदायक और महिलाओं का अपमान करने वाला बताया गया था।
उन पर भारतीय दंड संहिता की निम्न धाराओं में आरोप लगाए गए हैं:
- धारा 152 (BNS): भारत की संप्रभुता या अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य
- धारा 353: सार्वजनिक उपद्रव को बढ़ावा देने वाले बयान
- धारा 79: महिलाओं की गरिमा का अपमान
- धारा 196(1): धार्मिक आधार पर समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ाना
इनमें एक FIR हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जबकि दूसरी एक गांव के सरपंच की ओर से।
मानवाधिकार आयोग और सार्वजनिक प्रतिक्रिया
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रोफेसर की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकार हनन की आशंका जताई है। आयोग ने हरियाणा पुलिस से जवाब मांगा है।
इसी बीच, देशभर के अकादमिक जगत, बुद्धिजीवी वर्ग और विपक्षी दलों ने इस गिरफ्तारी की निंदा की है और इसे शैक्षणिक स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है।