सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा अहम फैसला सुनाया है, जिसमें 10 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार और उसके बाद हत्या करने वाले व्यक्ति की फांसी की सजा को “मायावी” बताते हुए आजीवन कारावास में बदल दिया गया।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
- SC ने स्पष्ट किया कि केवल क्रूरता और हिंसक प्रकृति के आधार पर मौत की सजा नहीं दी जा सकती।
- अपराध की गहराई, संदर्भ और अपराधी में सुधार की क्षमता जैसे “मिटिगेटिंग फैक्टर्स” देखे जाते हैं।
- अदालत ने कहा:
- “ब्रुटैलिटी केवल एक पहलू है; मगर ‘रेरेट ऑफ रेयर’ श्रेणी में आते हुए भी सुधार या अन्य कारकों को देखा जाना चाहिए।”
केसा था मूल मामला?
- आरोप है कि दोषी ने एक मासूम को लुभाकर उसके साथ बलात्कार किया और हत्या करने के बाद लाश को कई टुकड़ों में काटकर नदी में फेंक दिया।
- निचली अदालत ने अपराध की भयावहता और मासूम की हत्या होने के कारण दोषी को फांसी की सजा सुनाई थी।
क्यों बदली सजा?
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिता की मृत्यु, मानसिक स्थिति, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि जैसे कारकों को सजा तय करने में देखा जाना चाहिए।
- अदालत ने आरोपी की “सुधार क्षमता” और “गंभीरता” को आधार बनाते हुए इसे आजीवन कारावास में बदल दिया।
SC के पूर्व नज़ीर वाक़ये
- SC ने पहले भी कई बार कहा है कि मौत की सज़ा सिर्फ “रेरेट ऑफ रेयर” के अपराधों में ही लागू की जाती है।
- हाल में अन्य मामलों में जैसे जब क्रूरता और भीषण हत्या थी, लेकिन आरोपी की उम्र या सामाजिक स्थिति को देखते हुए सज़ा को जीवन जेल या कम से कम तय अवधि के लिए किया गया।
यह फैसला यह दर्शाता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था सिर्फ आवेग में फैसले नहीं लेती, बल्कि वैधानिक रूप में हर तत्व का मूल्यांकन करती है, चाहे वह क्रूरता हो, न्याय की आवश्यकता या अपराधी की स्थिति।
SC का मानना है:
- क्या अपराध ‘बहुत दुर्लभ’ है?
- क्या समझौते के लिए कोई संभावना है?
- तभी मौत की सजा सुनाई जाए, और उस पर फिर से गहन समीक्षा हो।