Waqf (Amendment) Act 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, CJI संजीव खन्ना ने लगाई फटकार

Waqf (Amendment) Act 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, CJI संजीव खन्ना ने लगाई फटकार
Waqf (Amendment) Act 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, CJI संजीव खन्ना ने लगाई फटकार

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर सुनवाई के दौरान ‘वक्फ बाय यूज़र’ की अवधारणा पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यहां तक कि दिल्ली हाईकोर्ट की इमारत भी कभी वक्फ भूमि पर बनी होने की बात कही गई थी।

सुप्रीम कोर्ट में अधिनियम की वैधता पर बहस

सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ वक्फ अधिनियम 2025 के खिलाफ दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान उन्होंने कहा कि वे यह नहीं कह रहे कि हर वक्फ बाय यूज़र गलत है, लेकिन इस पर वाजिब चिंता है। साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि इन याचिकाओं पर एक उच्च न्यायालय को सुनवाई के लिए नियुक्त किया जा सकता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस सुझाव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह मामला अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुना जाना चाहिए और अदालत को कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने की जरूरत है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस अनुरोध पर आगे चलकर विचार किया जाएगा।

क्या संसद मुसलमानों के लिए कानून नहीं बना सकती?

मुख्य न्यायाधीश ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या संसद मुसलमानों के लिए कानून नहीं बना सकती। सिब्बल ने कहा कि इस कानून में सरकार व्यक्तिगत धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप कर रही है। उन्होंने धारा 3(r) को चुनौती दी, जिसमें कहा गया है कि वक्फ बाय यूज़र के अंतर्गत आने वाली संपत्तियों को वक्फ माना जाएगा, सिवाय उन मामलों में जहां सरकार का स्वामित्व हो या विवाद हो।

सीजेआई खन्ना ने स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 26 सार्वभौमिक और धर्मनिरपेक्ष है, और यह सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होता है। उन्होंने कहा, “हिंदू धर्म में भी ऐसा होता है, और संसद ने मुसलमानों के लिए भी कानून बनाया है, यह अनुच्छेद 26 का उल्लंघन नहीं है।”

कलेक्टर को वक्फ घोषित करने का अधिकार असंवैधानिक: सिब्बल

कपिल सिब्बल ने वक्फ अधिनियम में कलेक्टर को दी गई शक्तियों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यदि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं, इसका निर्णय कलेक्टर करेगा, जो स्वयं सरकार का हिस्सा है। उन्होंने इसे “न्यायाधीश अपने ही मामले में” जैसा बताया और कहा कि यह संविधान के खिलाफ है।

सीजेआई ने इस पर कहा कि यथास्थिति बनी रहेगी और यह भी पूछा कि क्या कलेक्टर का निर्णय अदालत की निगरानी के तहत आ सकता है या नहीं।

सरकार का जवाब

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि अधिनियम की धारा 7(A) स्पष्ट करती है कि यदि संपत्ति को लेकर विवाद है, तो तब तक उसे वक्फ के रूप में पंजीकृत नहीं किया जाएगा जब तक कोई सक्षम अदालत इस पर निर्णय नहीं देती।

सुनवाई के दौरान अदालत ने यह स्पष्ट किया कि वह जल्दबाज़ी में कोई आदेश नहीं देगी और सभी पक्षों को सुनने के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा। मामले की सुनवाई आगे जारी रहेगी।