
नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे से सियासी हलकों में हलचल मच गई है। भले ही उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह खराब स्वास्थ्य बताई हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसके पीछे कुछ और ही कारण बताए जा रहे हैं। विपक्ष और विश्लेषकों का मानना है कि धनखड़ पर इस्तीफा देने का दबाव था।
विपक्ष ने उठाए सवाल, बोला- “जबरन इस्तीफा दिलवाया गया”
विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति पद से धनखड़ के हटने की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार को घेरा है। विपक्ष का आरोप है कि जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की नोटिस को स्वीकार करना ही उनके इस्तीफे का असली कारण है। विपक्ष का कहना है कि उन्हें यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया गया।
दो मंत्रियों का फोन कॉल बना टर्निंग पॉइंट?
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब धनखड़ ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार किया, तो कुछ ही देर में उन्हें दो वरिष्ठ मंत्रियों का फोन आया। कहा जा रहा है कि इन मंत्रियों ने उन्हें सूचित किया कि इस फैसले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुश नहीं हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इन कॉल्स में शामिल नाम हैं:
- जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष
- किरेन रिजिजू, संसदीय कार्यमंत्री
धनखड़ ने कथित तौर पर इन कॉल्स के जवाब में कहा था कि उन्होंने सब कुछ नियमों के दायरे में रहकर किया है।
BAC मीटिंग में नेताओं ने बनाई दूरी
राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की मीटिंग में भी इस विवाद का असर देखने को मिला। सोमवार को हुई दूसरी बीएसी बैठक में विपक्षी नेताओं ने शाम 4:30 बजे की बैठक से दूरी बना ली। माना जा रहा है कि सरकार इस बात से चौंक गई थी कि धनखड़ ने विपक्ष का महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
अब आगे क्या?
इस घटनाक्रम ने राजनीतिक हलकों में कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुए भी स्वतंत्र निर्णय लेना अब मुश्किल हो गया है? क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर एक और दबाव का संकेत है?
धनखड़ के इस्तीफे के बाद यह स्पष्ट है कि मामला सिर्फ स्वास्थ्य कारणों तक सीमित नहीं है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और खुलासे हो सकते हैं, जिससे सत्तारूढ़ दल की रणनीति और संवैधानिक संस्थाओं के बीच संबंधों पर नया विमर्श शुरू हो सकता है।