मुंबई: अंडरवर्ल्ड की दुनिया से राजनीति तक का सफर तय करने वाले अरुण गवली को सुप्रीम कोर्ट से 2007 के हत्या मामले में जमानत मिलने के बाद बुधवार को नागपुर सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया। 76 वर्षीय गवली ने करीब 17 साल जेल में बिताए। बुधवार रात करीब 9 बजे वह नागपुर से फ्लाइट के जरिए मुंबई पहुंचा, जहां दगड़ी चॉल स्थित उसके घर के बाहर समर्थकों की भीड़ पहले से मौजूद थी। जैसे ही गवली घर पहुंचा, फूलों की बारिश, गुलाल की बौछार और मिठाइयों के वितरण के साथ उसका जोरदार स्वागत किया गया।
जेल से छूटने के बाद जिस अंदाज में अरुण गवली का स्वागत हुआ, उसने कई सवाल खड़े कर दिए। सबसे बड़ा सवाल यही है कि एक साधारण मिल वर्कर परिवार से आया युवक कैसे अंडरवर्ल्ड का कुख्यात डॉन बना और फिर राजनीति में विधायक तक का सफर तय किया।
अरुण गवली का जन्म एक साधारण मराठी परिवार में हुआ था। उसके पिता गुलाबराव सिम्प्लेक्स मिल में काम करते थे और मां लक्ष्मीबाई मिल वर्कर थीं। 1970 और 80 के दशक में मुंबई में चल रहे गैंगवार में गवली की एंट्री हुई। उसने अपने भाईयों के साथ मिलकर दगड़ी चॉल को अपना गढ़ बना लिया और मुंबई के डॉन दाऊद इब्राहिम का सीधा विरोध किया। बाद में अंडरवर्ल्ड से राजनीति में कदम रखते हुए उसने ‘अखिल भारतीय सेना’ नामक राजनीतिक पार्टी की स्थापना की और विधायक भी चुना गया।
अरुण गवली की पत्नी आशा गवली, जो एक मुस्लिम परिवार से थीं, ने शादी के बाद हिंदू धर्म अपना लिया। वे भी महाराष्ट्र विधानसभा की पूर्व विधायक रह चुकी हैं और ‘मम्मी’ के नाम से जानी जाती हैं। गवली के पांच बच्चे हैं, जिनमें गीता गवली राजनीति में सक्रिय हैं।
उसकी संपत्ति पर नजर डालें तो 2008 में उसकी कुल संपत्ति लगभग 250 करोड़ रुपये आंकी गई थी, जिसमें दगड़ी चॉल की 11 इमारतें और पुणे के पास 40 एकड़ जमीन शामिल थी। 2014 के चुनावी हलफनामे में उसने 11 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की थी। हालांकि, वर्तमान में उपलब्ध आंकड़े नहीं हैं, लेकिन अनुमान है कि गवली परिवार की संपत्ति अब भी 250 करोड़ रुपये से अधिक है।
गवली पर 2007 में मुंबई के शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसंदेकर की हत्या का आरोप था। 2012 में सत्र न्यायालय ने उसे उम्रकैद और 17 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी, जिसे 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा। इस मामले में उस पर महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (MCOCA) के तहत केस दर्ज किया गया था।
28 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एम. एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की बेंच ने यह कहते हुए उसे जमानत दे दी कि वह पहले ही 17 साल से अधिक समय से जेल में है और उसकी अपील अब भी लंबित है।
अरुण गवली की रिहाई और उसके स्वागत समारोह ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि अपराध की दुनिया से राजनीति तक पहुंचने वालों को समाज किस नजर से देखता है। साथ ही, यह भी सवाल उठता है कि ऐसे व्यक्तित्वों की सार्वजनिक जीवन में भूमिका आखिर कितनी स्वीकार्य होनी चाहिए।