
नई दिल्ली: भारतीय संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होने जा रहा है और इसी के साथ एक बार फिर चर्चा में आ गया है ‘शून्य काल’ यानी Zero Hour। यह वह महत्वपूर्ण समय होता है जब सांसद जनता से जुड़े तत्काल और गंभीर मुद्दों को बिना पूर्व नोटिस के संसद में उठा सकते हैं। यह प्रक्रिया न तो संसद की नियम पुस्तिका में दर्ज है और न ही कोई औपचारिक व्यवस्था है, फिर भी इसका लोकतांत्रिक महत्व काफी बड़ा है।
क्या होता है शून्य काल?
शून्य काल भारतीय संसद की अनौपचारिक परंपरा है जिसकी शुरुआत 1962 में हुई थी। इसका उद्देश्य था सांसदों को उन जनहित के मुद्दों को उठाने का मौका देना जिन्हें तत्काल ध्यान देने की जरूरत होती है। यह प्रश्नकाल के बाद और दिन की नियमित कार्यवाही से पहले होता है। लोकसभा में यह दोपहर 12 बजे और राज्यसभा में सुबह 11 बजे शुरू होता है।
शून्य काल का नाम क्यों पड़ा?
इस समय को ‘शून्य काल’ इसलिए कहा गया क्योंकि यह एक ऐसा ‘संक्रमणकाल’ है जब प्रश्नकाल समाप्त हो जाता है और नियमित कार्यवाही शुरू नहीं होती। यह समय ना तो किसी औपचारिक नियम में बंधा होता है और ना ही पहले से तय किया गया एजेंडा होता है। शब्द ‘Zero Hour’ अंग्रेजी डिक्शनरी में ‘निर्णय का क्षण’ या ‘महत्वपूर्ण पल’ के रूप में परिभाषित है, जो इस प्रक्रिया के महत्व को दर्शाता है।
कैसे काम करता है शून्य काल?
- सुबह 10 बजे तक नोटिस: सांसदों को शून्य काल में किसी मुद्दे को उठाने के लिए उसी दिन सुबह 10 बजे तक लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा चेयरमैन को लिखित नोटिस देना होता है।
- मुद्दों का चयन: स्पीकर या चेयरमैन नोटिस की समीक्षा कर प्राथमिकता के आधार पर मुद्दों का चयन करते हैं। आमतौर पर लोकसभा में 20 सांसदों को बोलने का अवसर दिया जाता है।
- समय सीमा: हर सांसद को 2-3 मिनट का समय दिया जाता है। यदि जरूरी हो तो संबंधित मंत्री प्रतिक्रिया दे सकते हैं, लेकिन यह अनिवार्य नहीं होता, जैसा कि प्रश्नकाल में होता है।
क्यों जरूरी है शून्य काल?
- तत्काल जनहित के मुद्दे: जैसे बाढ़, दंगे, आतंकवादी हमले, या नीति में अचानक बदलाव — ऐसे मुद्दों को तुरंत संसद में उठाने के लिए यह समय सबसे उपयोगी होता है।
- सरकार की जवाबदेही: यद्यपि मंत्रियों का जवाब देना अनिवार्य नहीं, लेकिन इस प्रक्रिया से सरकार पर दबाव बनता है कि वह जनहित के विषयों पर ध्यान दे।
- लोकतंत्र की मजबूती: यह सांसदों को जनता की आवाज़ संसद तक पहुंचाने का एक त्वरित मंच देता है, जिससे लोकतंत्र की जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है।
क्या हैं चुनौतियां?
- व्यवधान की संभावना: कई बार विवादास्पद या भावनात्मक मुद्दों के कारण संसद की कार्यवाही बाधित हो सकती है।
- सीमित समय: 30 मिनट के अंदर सभी सांसदों को समय देना कठिन होता है।
- अनौपचारिक प्रकृति: चूंकि यह प्रक्रिया संसद के नियमों में औपचारिक रूप से शामिल नहीं है, इसलिए इसके दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है।
शून्य काल भारतीय लोकतंत्र की एक अनोखी और प्रभावशाली प्रक्रिया है जो आम जनता के सरोकारों को तुरंत संसद में उठाने का अवसर देती है। हालांकि, इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए समय प्रबंधन और नियमों का स्पष्ट निर्धारण आवश्यक है। जैसे-जैसे संसद का मानसून सत्र नजदीक आ रहा है, यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार शून्य काल में कौन-कौन से महत्वपूर्ण मुद्दे संसद के पटल पर आते हैं।