नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद के कांचा गाचिबावली जंगल में हो रही वृक्षों की कटाई पर तुरंत रोक लगाने का आदेश दिया है। यह कदम उस समय उठाया गया जब स्थानीय लोगों, छात्रों और पर्यावरण प्रेमियों ने इस मुद्दे पर तीव्र विरोध प्रदर्शन किया और कानूनी कार्रवाई की मांग की।
तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू की गई कटाई की प्रक्रिया, जो पिछले रविवार से शुरू हुई थी, में 400 एकड़ जमीन की हरियाली को खत्म किया जा रहा था। यह भूमि आईटी पार्क के विकास के लिए आरक्षित की गई थी। इस प्रक्रिया में भारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जा रहा था, जिससे पर्यावरणीय संकट और वन्यजीवों के आवास को गंभीर नुकसान हो रहा था।
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने इस भूमि की नीलामी के खिलाफ विरोध किया और कड़ी कार्रवाई की मांग की। उनका कहना था कि यह कदम न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है, बल्कि स्थानीय वन्यजीवों के लिए भी विनाशकारी साबित हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने से पहले, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने भी इसी प्रकार की रोक लगाने का आदेश दिया था। अदालत ने इस मामले की त्वरित सुनवाई की और साइट से प्राप्त रिपोर्ट्स और तस्वीरों को देखकर यह फैसला लिया कि जंगल की कटाई ने गंभीर पारिस्थितिकीय नुकसान किया है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने इस पर गहरी चिंता जताई और कहा कि जिस तेजी से पेड़ काटे जा रहे हैं, वह चिंताजनक है। उन्होंने यह भी बताया कि इस क्षेत्र में वन्यजीवों, जैसे मोर और हिरण, के अस्तित्व से यह स्पष्ट होता है कि यह क्षेत्र जैव विविधता से भरा हुआ है। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि पिछले आदेशों के अनुसार किसी भी जंगल क्षेत्र को घटाने से पहले विकसित क्षेत्र के पुनः वनारोपण की योजना होनी चाहिए, लेकिन तेलंगाना सरकार ने ऐसा कोई ठोस कदम नहीं उठाया था।
तेलंगाना सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई, और राज्य के मुख्य सचिव से इस निर्णय की तात्कालिकता को स्पष्ट करने के लिए एक हलफनामा दाखिल करने को कहा। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि इस मामले में सुओ मोटो केस दर्ज किया जाएगा और यदि सरकार ने आदेशों का पालन नहीं किया तो तेलंगाना के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
यह मामला अब एक महत्वपूर्ण कानूनी और पर्यावरणीय जंग में बदल चुका है, और इस पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद तेलंगाना सरकार को बड़े सवालों का सामना करना पड़ रहा है।