नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत को एक बड़ा झटका देते हुए उनकी वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने किसानों के विरोध प्रदर्शन से जुड़े मानहानि के केस में राहत की मांग की थी। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि याचिका में कोई नई या ठोस जानकारी नहीं दी गई, बल्कि इससे मामला और ज्यादा विवादास्पद बना दिया गया है।
क्या है मामला?
वर्ष 2020 में जब देशभर में किसान आंदोलन अपने चरम पर था, तब कंगना रनौत ने सोशल मीडिया पर कुछ विवादास्पद टिप्पणियाँ की थीं। आरोप है कि इन बयानों से किसानों की छवि को ठेस पहुंची, जिसके चलते उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज किया गया।
यह मामला पहले दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा, जहाँ से कंगना को कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा:
“आपने मामले को और मसालेदार बना दिया है। कोई नई जानकारी पेश नहीं की गई है जिससे याचिका पर पुनर्विचार किया जा सके।”
अदालत ने यह भी संकेत दिया कि सोशल मीडिया पर दी गई अभिव्यक्ति, अगर किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है, तो उसके लिए व्यक्ति को कानूनी जवाबदेही भी तय करनी होगी।
अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम मानहानि
इस फैसले के बाद यह बहस एक बार फिर तेज हो गई है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमाएं क्या हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह स्पष्ट किया है कि किसी को स्वतंत्रता के नाम पर किसी की छवि धूमिल करने का अधिकार नहीं है।
सोशल मीडिया की भूमिका पर सवाल
यह मामला केवल कंगना रनौत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की जिम्मेदारी को लेकर एक बड़ी मिसाल बन सकता है। अदालत का कहना है कि लोकप्रिय हस्तियों को अपने शब्दों के प्रभाव का अंदाज़ा होना चाहिए, क्योंकि उनके बयानों का समाज पर गहरा असर होता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कंगना रनौत को तो झटका लगा है, लेकिन यह निर्णय कानून, प्रतिष्ठा और सोशल मीडिया व्यवहार के संतुलन को लेकर एक अहम संकेत भी देता है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, लेकिन यह अधिकार निरंकुश नहीं है।