Operation Gibraltar: पाकिस्तान की नाकाम साजिश जिसने 1965 के युद्ध की नींव रखी

Operation Gibraltar: पाकिस्तान की नाकाम साजिश जिसने 1965 के युद्ध की नींव रखी
Operation Gibraltar: पाकिस्तान की नाकाम साजिश जिसने 1965 के युद्ध की नींव रखी

नई दिल्ली: 1965 में पाकिस्तान द्वारा शुरू किया गया ऑपरेशन जिब्राल्टर आज भी भारत-पाक संबंधों के इतिहास में एक दुस्साहसी लेकिन विफल सैन्य योजना के रूप में जाना जाता है। इस ऑपरेशन का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर विद्रोह भड़काकर भारत को अस्थिर करना था, लेकिन इसके उलट भारत ने न केवल पाकिस्तान की साजिश को नाकाम किया, बल्कि इसका मुंहतोड़ जवाब देकर युद्ध के मैदान में भी उसे पछाड़ दिया।

ऑपरेशन जिब्राल्टर की पृष्ठभूमि

भारत-पाक विभाजन के बाद 1947-48 में कश्मीर पर पहला युद्ध हुआ, लेकिन पाकिस्तान कश्मीर की स्थिति से संतुष्ट नहीं था। 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद पाकिस्तान को लगा कि भारत कमजोर हो गया है और यह कश्मीरी मुसलमानों के विद्रोह का सही समय है। इसी गलतफहमी के आधार पर तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान और पाक सेना ने एक गुप्त योजना बनाई ऑपरेशन जिब्राल्टर।

योजना क्या थी?

ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत हजारों पाकिस्तानी सैनिकों और लड़ाकों को आम कश्मीरी नागरिकों के वेश में सीमा पार भेजा गया। इनका मकसद था:

  • प्रशासन को अस्थिर करना
  • बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाना
  • स्थानीय लोगों को हथियारों और प्रचार के जरिए विद्रोह के लिए उकसाना

इन घुसपैठियों को ‘सलाहुद्दीन’, ‘गजनवी’ जैसे नामों से बने टुकड़ियों में बांटा गया था।

क्यों फेल हुआ ऑपरेशन?

पाकिस्तान की यह साजिश कुछ ही दिनों में धराशायी हो गई। कारण थे:

  • स्थानीय समर्थन का अभाव: पाकिस्तान को उम्मीद थी कि कश्मीरी लोग उनका साथ देंगे, लेकिन स्थानीय नागरिकों ने उल्टा भारत सरकार को जानकारी दी।
  • भारतीय सेना की तेज़ प्रतिक्रिया: भारत ने तुरंत कार्रवाई करते हुए घुसपैठियों को खदेड़ दिया।
  • गलत रणनीतिक अनुमान: पाकिस्तान ने भारत की सैन्य क्षमता और राजनीतिक इच्छाशक्ति को कमतर आंका।
  • खुफिया विफलता: पाकिस्तान ने कश्मीर के माहौल का गलत आकलन किया।

कैसे शुरू हुआ 1965 का युद्ध?

जब भारत को घुसपैठ का पता चला, तो उसने जवाबी कार्रवाई करते हुए सीमा पार कर पाकिस्तानी ठिकानों पर हमला किया। इसके बाद दोनों देशों के बीच 6 सितंबर से 23 सितंबर 1965 तक भीषण युद्ध हुआ। पंजाब, राजस्थान और कश्मीर में बड़े सैन्य संघर्ष हुए।

परिणाम: एक अधूरा संघर्ष

युद्ध संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से समाप्त हुआ। ताशकंद समझौते (जनवरी 1966) में दोनों देशों ने सीमा पर यथास्थिति बहाल की, लेकिन कश्मीर का मुद्दा वहीं का वहीं रह गया। पाकिस्तान को कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर शर्मिंदगी झेलनी पड़ी, जबकि भारत ने अपनी सीमाओं की रक्षा कर अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती हासिल की।

ऑपरेशन सिंदूर: अतीत की गूंज वर्तमान में

ऑपरेशन जिब्राल्टर की परछाई आज भी भारत-पाक रिश्तों पर बनी हुई है। 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 नागरिकों की मौत के बाद भारत ने 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाकर पाकिस्तान के बहावलपुर स्थित जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर मिसाइल हमले किए।

भारत ने दो टूक कहा है कि बातचीत तभी होगी जब सीमा पार से आतंकवाद बंद होगा। ऑपरेशन जिब्राल्टर, पाकिस्तान की गलतफहमियों और रणनीतिक विफलता का प्रतीक बन चुका है। वहीं, भारत ने हर बार यह स्पष्ट किया है कि घुसपैठ का जवाब केवल शब्दों से नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई से दिया जाएगा। आज, 60 साल बाद भी पाकिस्तान वही रणनीति दोहराता दिखता है लेकिन अब भारत कहीं अधिक मजबूत, आत्मनिर्भर और वैश्विक समर्थन से युक्त है।

Pushpesh Rai
एक विचारशील लेखक, जो समाज की नब्ज को समझता है और उसी के आधार पर शब्दों को पंख देता है। लिखता है वो, केवल किताबों तक ही नहीं, बल्कि इंसानों की कहानियों, उनकी संघर्षों और उनकी उम्मीदों को भी। पढ़ना उसका जुनून है, क्योंकि उसे सिर्फ शब्दों का संसार ही नहीं, बल्कि लोगों की ज़िंदगियों का हर पहलू भी समझने की इच्छा है।