पटना: एनडीए गठबंधन में दलित नेताओं की नाराज़गी खुलकर सामने आने लगी है। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने 14 अप्रैल को बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की जयंती के दिन एनडीए से नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया। पारस ने इस मौके को प्रतीकात्मक बताते हुए कहा कि उनकी पार्टी को दलित पहचान के चलते लगातार अनदेखी और अन्याय का सामना करना पड़ा।
“मैं 2014 से NDA के साथ रहा हूं, लेकिन अब हम इस गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं,” पारस ने दो टूक शब्दों में कहा। उन्होंने दावा किया कि न तो बीजेपी और न ही जेडीयू नेतृत्व ने RLJP को गंभीरता से लिया, और बिहार के NDA बैठकों में पार्टी की उपेक्षा होती रही।
पारस का हमला
पशुपति पारस ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी सीधा हमला बोला, कहा— “20 साल के शासन में बिहार की शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गई है, एक भी नया उद्योग नहीं लगा, और भ्रष्टाचार हर कल्याणकारी योजना को निगल रहा है।” गौरतलब है कि पारस ने पिछले साल अपने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, जब उनके भतीजे चिराग पासवान के नेतृत्व वाले गुट को NDA में पांच लोकसभा सीटें दी गईं और उन्हें कोई तवज्जो नहीं मिली।
मांझी का भी NDA से मोहभंग!
इधर, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी भी लगातार एनडीए से असंतोष जाहिर कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मेरे पार्टी कार्यकर्ताओं को बीजेपी और जेडीयू लगातार हाशिए पर डाल रहे हैं।” हालांकि उन्होंने ये भी जोड़ा कि जेपी नड्डा और संजय जायसवाल ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि विधानसभा चुनावों में उनकी बात सुनी जाएगी।
HAM ने 35-40 सीटों की मांग की है ताकि दलित मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाया जा सके। मांझी ने कहा, “अगर हमारी पार्टी के 20 या उससे अधिक विधायक जीतते हैं, तो हम किसी भी सरकार में अपनी बात मनवा सकते हैं।”
महागठबंधन की ओर संकेत?
हालांकि मांझी ने स्पष्ट किया कि उनके असंतोष का NDA पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा, वहीं पारस ने संकेत दिए कि महागठबंधन अगर समय पर “सम्मान” देता है, तो वे वहां नई राजनीतिक दिशा तलाश सकते हैं। बिहार एनडीए में पहले से ही चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जेडीयू जैसी कई सत्तालोलुप ताकतें एक साथ जुड़ी हुई हैं। अब पारस का बाहर जाना और मांझी की नाराजगी गठबंधन में दरार के साफ संकेत दे रही है। आगामी विधानसभा चुनावों से पहले यह सियासी उठापटक NDA के लिए चुनौती बन सकती है।