
पटना: आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के बीच अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। 24 सितंबर को महागठबंधन ने ‘अतिपिछड़ा न्याय संकल्प’ के तहत EBC समुदाय के लिए 10 वादों की घोषणा की है। इसे विपक्ष की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के परंपरागत वोटबैंक में सेंध लगाने की बड़ी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) यानी JDU का सबसे मजबूत सामाजिक आधार अति पिछड़ा वर्ग रहा है। अब कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की अगुवाई वाला महागठबंधन EBC समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यदि महागठबंधन EBC वोटों में थोड़ी भी सेंध लगाने में सफल हो गया, तो JDU की सीटों में भारी गिरावट आ सकती है।
कौन हैं अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और क्यों हैं इतने अहम?
बिहार में EBC यानी Extremely Backward Classes राज्य के अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का एक उपवर्ग हैं। इनमें वे जातियां शामिल हैं जो सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से अत्यंत पिछड़े मानी जाती हैं। हालिया जातीय सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार की 13.07 करोड़ जनसंख्या में EBC की हिस्सेदारी 36.01% है, जो राज्य का सबसे बड़ा सामाजिक समूह है।
EBC में हज्जाम, सहनी, केवट, निषाद, लोहार, कहार, तेली, नोनिया जैसी जातियां शामिल हैं। ये जातियां पारंपरिक रूप से कारीगर, मछुआरे, श्रमिक या सेवा से जुड़ी रहीं हैं। समय के साथ कई जातियों की पारंपरिक आजीविका लुप्त हो गई है, जिससे सामाजिक असुरक्षा और राजनीतिक उपेक्षा की भावना इन वर्गों में बढ़ी है।
‘अतिपिछड़ा न्याय संकल्प’ के 10 वादे
महागठबंधन ने EBC के लिए जिन 10 वादों की घोषणा की है, वे इस प्रकार हैं:
- पंचायत और नगर निकायों में आरक्षण 20% से बढ़ाकर 30% किया जाएगा
- आबादी के अनुपात में आरक्षण बढ़ाने के लिए कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाला जाएगा
- भर्तियों में ‘नॉट फाउंड सूटेबल (NFS)’ को अवैध घोषित किया जाएगा
- अल्प या अति समावेशन मामलों को लेकर कमिटी बनेगी
- भूमिहीन EBC, SC/ST और पिछड़ा वर्ग के लोगों को शहर में 3 डेसिमल और गांव में 5 डेसिमल आवासीय भूमि दी जाएगी
- निजी स्कूलों की आरक्षित सीटों में से आधा हिस्सा EBC, SC/ST और पिछड़ा वर्ग के बच्चों को
- 25 करोड़ रुपये तक के सरकारी ठेकों में 50% आरक्षण
- निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू किया जाएगा
- आरक्षण की निगरानी के लिए उच्च अधिकार प्राप्त आरक्षण नियामक प्राधिकरण का गठन
- SC/ST एक्ट की तर्ज पर EBC अत्याचार निवारण अधिनियम बनाया जाएगा
क्या महागठबंधन की रणनीति काम करेगी?
पॉलिटिकल विश्लेषक रशीद किदवई के अनुसार, इस समय महागठबंधन का मुख्य लक्ष्य JDU को 25-30 सीटों तक सीमित करना है ताकि NDA के लिए सरकार बनाना मुश्किल हो जाए। यही कारण है कि कांग्रेस और RJD ने EBC पर सीधा फोकस किया है।
हालांकि, चुनौती यह है कि नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में EBC के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए हैं:
- पंचायत और नगर निकायों में आरक्षण
- EBC आयोग का गठन
- कल्याणकारी योजनाओं के जरिए लक्षित सहायता
- नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण विस्तार
इसके अलावा, नीतीश सरकार ने महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों के लिए भी नकद हस्तांतरण योजनाएं शुरू की हैं, जिससे EBC समुदाय में सरकार के प्रति समर्थन कायम है।
कांग्रेस और RJD का बदला रुख
एक समय था जब कांग्रेस ने कर्पूरी ठाकुर की आरक्षण नीति का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विरोध किया था। लेकिन समय के साथ उसका रुख बदलता गया। 1990 और 2000 के दशक में कांग्रेस का उच्च जातियों में आधार कमजोर हुआ, जिसके बाद उसने OBC और EBC के लिए आरक्षण समर्थन शुरू किया। अब राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस EBC समुदाय को अपनी चुनावी रणनीति का केंद्र बना रही है।
RJD ने हमेशा OBC और EBC वर्ग को लेकर सक्रिय राजनीतिक पहल की है। लालू यादव के कार्यकाल में इन वर्गों को छात्रवृत्ति, छात्रावास और आरक्षण जैसे कई लाभ मिले।
क्या होगा असर?
फिलहाल यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि महागठबंधन EBC वोटों में कितनी सेंध लगा पाएगा, लेकिन यह साफ है कि बिहार चुनाव 2025 का सबसे बड़ा सियासी दांव EBC वोटबैंक पर ही खेला जा रहा है। JDU और BJP की नजर जहां कल्याणकारी योजनाओं और नीतीश के पुराने कामों के सहारे EBC को साथ बनाए रखने की है, वहीं महागठबंधन नए वादों के जरिए इस आधार को डगमगाने की कोशिश कर रहा है।
चुनाव में कौन कितना सफल होता है, यह तो नतीजों के बाद ही स्पष्ट होगा, लेकिन फिलहाल के राजनीतिक संकेत साफ हैं—EBC बिहार चुनाव 2025 का सबसे निर्णायक मतदाता वर्ग बन चुका है।