भारतीय राजनीति में एक कद्दावर हस्ती सुषमा स्वराज ने कई दशकों तक चले अपने शानदार करियर में अमिट छाप छोड़ी। भारत के सियासी फलक पर अमिट छाप छोड़ने वाली सुषमा स्वराज का हर कोई मुरीद रहा। उनका 41 सालों का राजनीतिक जीवन तमाम उपलब्धियों से भरा था। सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता होने के साथ प्रखर वक्ता थीं। जब वो संसद में दहाड़ती थी तो पूरा देश को शक्कर और विपक्षीयों को तीखी मिर्ची लगती थी। सुषमा स्वराज उस विदेश मंत्री का नाम जिन्होंने कमान थामते ही मंत्रालय की सूरत बदल कर रख दी। उनके मंत्री रहते ये विभाग आम भारतीय का विभाग कहलाने लगा। जितनी सहज थीं मंत्री जी उतनी ही काम को लेकर समर्पित और सख्त। चाहे वो पाकिस्तान की बोलने सुनने में लाचार गीता हो या फिर दुर्दांत आतंकियों के बीच फंसे भारतीयों की वतन वापसी करानी हो, उन्होंने सब तक पहुंच बनाई । ऐसी शख्सियत कि आज भी जब उनको याद करते हैं तो आंखें भर आती हैं और गर्व से भारत का सिर ऊंचा हो जाता है। 14 फरवरी, 1952 को हरियाणा के अंबाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज का एक युवा वकील से लेकर भारत की सबसे प्रतिष्ठित राजनेताओं में से एक बनने का सफर उनके समर्पण, लचीलेपन और नेतृत्व का प्रमाण है।
शुरुआती जीवन और राजनीति में प्रवेश
सुषमा स्वराज का राजनीतिक सफर कम उम्र में ही शुरू हो गया था। उन्होंने अंबाला कैंट के सनातन धर्म कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से कानून की डिग्री हासिल की। उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से हुई।
1977 में, 25 साल की छोटी उम्र में, सुषमा स्वराज हरियाणा की सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री बनीं, उन्होंने श्रम और रोजगार मंत्रालय संभाला। यह जनता पार्टी सरकार के दौरान की बात है, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के बाद एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलाव था।
बाधाओं को तोड़ना: दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री
1998 में, सुषमा स्वराज ने दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनकर इतिहास रच दिया। हालाँकि उनका कार्यकाल अक्टूबर से दिसंबर 1998 तक संक्षिप्त था, लेकिन यह नागरिक मुद्दों को संबोधित करने और सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर बनाने के उनके प्रयासों के लिए जाना जाता है। इस अवधि के दौरान उनका नेतृत्व राष्ट्रीय मंच पर उनकी भावी भूमिकाओं का अग्रदूत था।
संसदीय कैरियर और मंत्री भूमिकाएँ
सुषमा स्वराज का संसदीय कैरियर लोकसभा और राज्यसभा दोनों में उनके कई कार्यकालों के लिए विशिष्ट है। वह पहली बार 1990 में राज्यसभा के लिए चुनी गई थीं। उनकी वक्तृत्व कला और नीति की उनकी गहरी समझ ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में एक प्रमुख आवाज़ के रूप में स्थापित कर दिया।
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में, सुषमा स्वराज ने विभिन्न पदों पर कार्य किया। उल्लेखनीय रूप से, वह 1996 से और बाद में 1998 से 2003 तक केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री रहीं। उनके कार्यकाल में मीडिया क्षेत्र में महत्वपूर्ण उदारीकरण हुआ, जिसमें निजी एफएम रेडियो स्टेशनों की स्वीकृति और सामुदायिक रेडियो की स्थापना शामिल थी।
स्वराज ने 2003 से 2004 तक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री के रूप में भी कार्य किया, साथ-साथ संसदीय मामलों के मंत्री के रूप में भी कार्य किया। 2004 में यूपीए के सत्ता में आने पर सोनिया गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आ रहा था, जिसका सुषमा स्वराज ने जोरदार विरोध किया। इस अवधि के दौरान, उन्होंने “जननी सुरक्षा योजना” शुरू की, जिसका उद्देश्य संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करना था।
विपक्ष की नेता
2009 से 2014 के बीच, सुषमा स्वराज ने लोकसभा में विपक्ष की नेता के रूप में कार्य किया। उनके नेतृत्व की विशेषता यूपीए सरकार की कड़ी आलोचना थी, और उन्होंने भारत के लिए भाजपा की नीतियों और दृष्टिकोण को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और अन्य लोगों के साथ उनकी बहसें उनके सार और तीव्रता के लिए प्रसिद्ध थीं।
विदेश मंत्री: एक कूटनीतिक चमत्कार
2014 में, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तो सुषमा स्वराज को विदेश मंत्री नियुक्त किया गया, जो इंदिरा गांधी के बाद पद संभालने वाली दूसरी महिला बनीं। उनके कार्यकाल की पहचान कूटनीति के प्रति एक सक्रिय और जन-केंद्रित दृष्टिकोण से हुई।
सुषमा स्वराज ने भारतीय प्रवासियों से जुड़ने और उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया। उनके समय पर किए गए हस्तक्षेपों ने विदेशों में फंसे कई भारतीयों की मदद की, जिससे उन्हें व्यापक प्रशंसा मिली। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और पाकिस्तान सहित अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं और संधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विरासत और निधन
सुषमा स्वराज की विरासत बहुआयामी है। वह न केवल भारतीय राजनीति में महिलाओं के लिए एक पथप्रदर्शक थीं, बल्कि एक ऐसी नेता भी थीं जिन्होंने सार्वजनिक सेवा और कूटनीति को प्राथमिकता दी। 6 अगस्त, 2019 को हृदयाघात के कारण उनका अचानक निधन राष्ट्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षति थी। राजनीतिक स्पेक्ट्रम के सभी नेताओं ने उनके योगदान और भारत की प्रगति के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को श्रद्धांजलि दी।
सुषमा स्वराज की राजनीतिक यात्रा बाधाओं को तोड़ने, समर्पण के साथ जनता की सेवा करने और भारतीय राजनीति और कूटनीति पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ने की कहानी है। उनका जीवन और कार्य भविष्य की पीढ़ियों के नेताओं को प्रेरित करना जारी रखते हैं।