नई दिल्ली: उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित सिखों के पवित्र तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब की यात्रा 25 मई से शुरू हो चुकी है। समुद्र तल से लगभग 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह गुरुद्वारा दसवें सिख गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी को समर्पित है और इसे दुनिया के सबसे ऊंचे गुरुद्वारों में से एक माना जाता है। बर्फ से ढके पर्वतों के बीच स्थित यह गुरुद्वारा एक ग्लेशियल झील के किनारे पर बना हुआ है, जो इसकी आध्यात्मिक और प्राकृतिक भव्यता को और बढ़ा देता है।
यात्रा के लिए जरूरी है ऑनलाइन पंजीकरण
हेमकुंड साहिब की यात्रा पर जाने के लिए ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य है, जैसा कि उत्तराखंड के चार धामों के लिए होता है। अगर आप इस वर्ष यात्रा की योजना बना रहे हैं तो सरकारी वेबसाइट के माध्यम से पहले ही रजिस्ट्रेशन करा लें। यह गुरुद्वारा हर वर्ष अप्रैल-मई में खुलता है और सर्दियों में बर्फबारी के कारण बंद रहता है। इस समय हेमकुंड साहिब में अधिकतम तापमान 7 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान -2 डिग्री सेल्सियस के आस-पास है। ऐसे में यात्रियों को ठंड के अनुकूल तैयारी करके आना चाहिए।
हेमकुंड साहिब कैसे पहुंचें?
हेमकुंड साहिब का प्रवेश द्वार है गोविंदघाट, जहां तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। इसके बाद यात्री पैदल ट्रैक कर आगे की यात्रा पूरी करते हैं।
- निकटतम हवाई अड्डा: जॉलीग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून), जहां से गोविंदघाट की दूरी लगभग 276 किलोमीटर है। यहां से टैक्सी या बस से आगे जा सकते हैं।
- रेल मार्ग: हरिद्वार तक ट्रेन से पहुंच सकते हैं। वहां से जोशीमठ तक उत्तराखंड परिवहन की बस या टैक्सी उपलब्ध है।
- जोशीमठ से गोविंदघाट की दूरी मात्र 24 किलोमीटर है। वाहन पुलना गांव तक ही जाते हैं, जो गोविंदघाट से 5 किमी दूर है। यहां से 15 किमी का ट्रैक कर हेमकुंड साहिब पहुंचा जाता है। अधिकतर यात्री इस ट्रैक पर घांघरिया में रात्रि विश्राम करते हैं।
यात्रा के साथ प्राकृतिक सौंदर्य का भी अनुभव
हेमकुंड साहिब यात्रा के साथ-साथ पर्यटक पास ही स्थित वैली ऑफ फ्लावर्स (फूलों की घाटी) भी जाते हैं। यह स्थल यूनESCO विश्व धरोहर सूची में शामिल है और जुलाई-अगस्त के महीनों में यहां के अल्पाइन फूल पूरी तरह खिले रहते हैं। घांघरिया से यह घाटी सिर्फ 3 किलोमीटर दूर है और इसका ट्रैक भी अत्यंत लोकप्रिय है। हेमकुंड साहिब की यात्रा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक और आध्यात्मिक अनुभव भी है। ऊंचाई, कठिन ट्रैक और मौसम की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यात्रियों को पूरी तैयारी और पंजीकरण के साथ यात्रा पर निकलना चाहिए। यह यात्रा श्रद्धा, साहस और प्रकृति के प्रति आदर का संगम है।