दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड कैसे बन गया BCCI, कभी विश्व विजेता टीम के सम्मान के लिए बोर्ड के पास नहीं थे पैसे

बोर्ड ऑफ क्रिक्रेट कंट्रोल इन इंडिया यानी बीसीसीआई आज एक ऐसा नाम है जिसे दुनियाभर में लोग पहचानते हैं। क्रिकेट की दुनिया में इसे दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड के रूप में जाना जाता है। बीसीसीआई के पास इतना पैसा है कि दुनिया के बाकी से सभी क्रिकेट बोर्ड एक भी हो जाएं तो भी वो उन्हें अकेले टक्कर दे सकता है।

लेकिन ये स्थिति आज से 30-35 साल पहले नहीं थी। आलम ये था जब कपिल देव की कप्तानी में जब टीम इंडिया ने साल 1983 में विश्वकप पर कब्जा किया तब बोर्ड के पास खिलाड़ियों का सम्मान करने लायक पैसे भी नहीं थे।

दरअसल, जब 1983 का विश्वकप हो रहा था, तब फाइनल में बीसीसीआई के प्रमुख एनपीके साल्वे भी मौजूद रहना चाहते थे। लेकिन, लॉर्ड्स में उन्हें मैच के पास नहीं दिए गए। अपने देश की टीम फाइनल में हो और बोर्ड के प्रमुख को ही एंट्री ना मिले, ये तो स्वाभिमान पर चोट ही है। इसके बाद साल्वे ने फैसला किया कि वह ऐसा ही आयोजन भारत में करवाएंगे। 1987 विश्व कप से ठीक पहले साल 1986 में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने टूर्नामेंट के स्पॉन्सरशिप टाइटल के लिए एक मिलियन डॉलर का भुगतान किया। विश्व कप का आयोजन भारत और पाकिस्तान में किया गया। यह टूर्नामेंट व्यावसायिक रूप से सफल नहीं रहा था, लेकिन इंग्लैंड के बाहर आयोजित होने वाला पहला टूर्नामेंट था। साथ ही, भारत में क्रिकेट को कमर्शल तौर पर स्थापित करने की एक उम्मीद भी जगी। यहीं से शुरुआत हुई भारतीय क्रिकेट बोर्ड के शक्तिशाली बनने की कहानी। 1987 से 1992 तक बीसीसीआई भले ही वित्तीय उथल-पुथल से गुजरा, लेकिन आगे अभी बहुत कुछ होना बाकी था।

1983 वर्ल्ड के बाद क्रिकेट को इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की मुट्ठी से निकालने वाले जगमोहन डालमिया थे, वह बीसीसीआई के पहले ऐसे अध्यक्ष रहे जो क्रिकेट में पैसा लाए। डालमिया ने बिंद्रा के साथ मिलकर भारतीय बोर्ड की छवि बदली। उनके समय में विदेशी टेलीविजन चैनल भारत में आए। उनके अधिकार महंगे बिकने लगे। इसे उनका सकारात्मक योगदान मान सकते हैं। डालमिया ने क्रिकेट में आईसीसी पर इंग्लैड और ऑस्ट्रेलिया के एकाधिकार को तोड़ा। जगमोहन डालमिया का मानना था कि क्रिकेट प्रशासनिक स्तर पर लोकतांत्रिक होनी चाहिए। उनसे पहले एशिया के किसी व्यक्ति का आईसीसी का अध्यक्ष बनना एक सपने जैसा ही था।

1992 में दूरदर्शन ने भारत में होने वाले क्रिकेट मैच के प्रसारण के लिए बीसीसीआई से 5 लाख रुपये की मांग की। एक साल बाद ही यह बाज़ी पलट गई।

1993 में बीसीसीआई ने भारत-इंग्लैंड सीरीज़ के टेलीविजन अधिकार ट्रांस वर्ल्ड इंटरनैशनल को बेच दिए। बदले में दूरदर्शन को इन मैचों के प्रसारण के अधिकार के लिए TWI को एक मिलियन डॉलर का भुगतान करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस समझौते से बीसीसीआई के खाते में 6 लाख डॉलर से अधिक रकम आई, आज के हिसाब से चार करोड़ 91 लाख रुपये से ज़्यादा। इसके साथ ही आर्थिक मोर्चे पर बोर्ड को थोड़ी राहत भी मिली। एशियाई क्रिकेट का प्रभाव बढ़ने लगा।

1996 के विश्वकप के लिए इंग्लैंड ने सोचा कि उन्हें विश्व कप का वादा किया गया है और इसके एसोसिएट्स को 60 हज़ार पाउंड की गारंटी दी गई है। यह रकम होती है 62 लाख रुपये से ज़्यादा। लेकिन, भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका ने एसोसिएट्स को एक लाख पाउंड की पेशकश कर आयोजन की बाज़ी अपने हक में कर ली। इसके साथ ही बीसीसीआई की धमक सुनाई देने लगी थी।

1996 के विश्व कप में सचिन तेंडुलकर भी खेल रहे थे। क्रिकेट का खुमार बढ़ाने के लिए अपने आप में यह भी एक बड़ी वजह थी। कमर्शल तौर पर भी यह विश्व कप सफल रहा। मैचों के अधिकार की खरीद फरोख्त के पीछे थे जगमोहन डालमिया। वह आईसीसी के चीफ भी बने। उनके इस कुर्सी पर पहुंचने के बाद तो भारतीय क्रिकेट को मानो पंख लग गए। चीज़ें बदलने लगीं। 1999 में BCCI ने देश में खेले जाने वाले सभी अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मैचों के प्रसारण के लिए दूरदर्शन के साथ रिकॉर्ड पांच साल का करार किया। कुल मिलाकर यह सौदा 54 करोड़ रुपये प्रति वर्ष का था। बीसीसीआई अमीर हो रहा था और साथ ही मजबूत भी।

साल 2007 में टी-20 विश्वकप का आयोजन हुआ, भारत चैंपियन बना। इसके बाद भारत ने अपनी टी-20 लीग शुरू की, इंडियन प्रीमियर लीग यानी IPL। बीसीसीआई ने सिंगापुर के वर्ल्ड स्पोर्ट ग्रुप के साथ 918 मिलियन डॉलर में 10 वर्षीय प्रसारण अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। एक साल बाद BCCI की सोनी ग्रुप के साथ नौ साल के प्रसारण अधिकारों के लिए 1.63 अरब डॉलर पर बात बनी।

Digikhabar Editorial Team
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