यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय के लिए मां ब्रह्मचारिणी की कैसे करें पूजा

Brahmcharini
Brahmcharini

यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय के लिए मां ब्रह्मचारिणी की कैसे करें पूजा

यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय के लिए मां ब्रह्मचारिणी की कैसे करें पूजा

देवी दुर्गा का यह रूप साधकों को अमोघ फल प्रदान करता है। साधक को यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के दूसरे दिन साधक इनकी आराधना कर अपने चित्त को ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित करते हैं। ब्रह्मचारिणी माँ की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन साधक अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्मचारिणी दो शब्दों के मेल से बना है, ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। इसकी जानकारी भविष्य पुराण में मिलती है। कथावाचक मां ब्रह्मचारिणी किकथा सुनाके हैं कि मां ब्रह्मचारिणी ने अपने पूर्व जन्म में राजा हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया था। तब देवर्षि नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर को अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। इस दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपस्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। देवी ब्रह्मचारिणी की समुचित उपासना साधक में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि करता है. देवी दुर्गा के इस द्वितीय स्वरुप की अनुकंपा से साधक की समस्त समस्याओं एवं परेशानियों का नाश और उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय मिलती होती है.

उपासना के लिए श्लोक, ध्यान मंत्र और स्तोत्र पाठ:

इन्हें प्रसन्न करने के लिए साधक को इस श्लोक का मंत्रोच्चार करना चाहिए

|| दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||

अर्थात, हे देवी ब्रह्मचारिणी, जो हाथों में माला और कमंडलु धारण करती हैं, मुझ पर कृपा करें।

ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्घकृत शेखराम्.
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम.
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन.
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

स्तोत्र पाठ

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्.
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी.
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

मान्यता है कि मां दुर्गा के द्वितीय रुप देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना इस मंत्र और स्तोत्र से करने पर भक्तों को अनन्त फल की प्राप्ति होती है। जीवन के कठिन-से-कठिन संघर्षों में भी उसका चित्त एकनिष्ठ रहता है और मन कर्तव्य-पथ से विमुख नहीं होता है।

Digikhabar Editorial Team
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