90s का जैन हवाला कांड, जिसमें राजीव गांधी और आडवाणी की भी फूल गई थी सांसे
90s का जैन हवाला कांड, जिसने राजीव गांधी और आडवाणी की भी फूल गई थी सांसे
आपने इलेक्टोरल बॉन्ड वाली लिस्ट देखी…. ये लिस्ट तो मोदी काल की थी जिसने इतना हड़कंप मचा दिया है… लेकिन राजीव गांधी के काल में भी एक लिस्ट निकली थी… जिसने कई नेताओं को इस्तिफा देने और जेल भेजने के कगार पर खड़ा कर दिया था… तो चलिए सुनाते हैं आपको वो स्टोरी जब एक ऐसी ही लिस्ट के कारण से दिग्गज नेता फंस गए थे… जिसमें भारतरत्न लालकृष्ण आडवाणी और राजीव गांधी शामिल है… तो के नब्बे का दशक में दिल्ली पुलिस ने 2 आतंकवादियों को गिरफ्तार किया और इंट्रोगेशन (पूछताछ) में पता चला कि वो JKLF यानि (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) को पैसे ट्रांसफर करने का काम करते है…ये पैसे लंदन और दुबई से आते हैं इस लीड को फॉलो अप करते हुए सीबीआई ने हवाला ऑपरेटर्स के यहां छापेमारी शुरू कर दी… “हवाला” मतलब काले धन को एक जगह से दूसरे जगह ट्रांसफर करने को कहा जाता है। अब ऐसा ही एक हवाला ऑपरेटर SK और JK Jain थे… दोनों के यहां भी रेड मारी गई इनके पास से कैश, फॉरेन करेंसी , सोना तो निकला ही लेकिन उसके अलावा कुछ बहुत इंटरस्टिंग निकला… और वो 2 डायरी थे। इन डायरियों में काफी हाई प्रोफाइल राजनेताओं के नाम लिखे थे जिनमें कैबिनेट मंत्री, राज्यपाल, सरकारी अधिकारी सबके नाम शामिल थे और इन सबमें सबसे ज्यादा हाइलाइट हुआ विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी का नाम… और आडवाणी ने इसी बात पर लोकसभा से इस्तिफा दे दिया … अब डायरी में हर नाम के सामने उन्हें कितने रुपए दिए गए हैं वो भी लिखा हुआ था… SK Jain ने कोर्ट में बताया कि उसने राजीव गांधी को भी करोड़ों रुपए दिए थे… लेकिन कोर्ट में मामला चल नहीं पाया और सबको बरी कर दिया गया क्योंकि कोर्ट का कहना था कि उन डायरियों को निर्णायक प्रूफ नहीं माना जा सकता है, और सीबीआई ने कोई भी साक्ष्य चार्ज शीट में नहीं डाला था। लेकिन रुकिए… कहीं आपको ये मुंगेरीलाल के हसीन सपने तो नहीं लगते न… तो चलिए आपको प्रूफ भी दे देते हैं… राजेश जोशी जो पिछले तीन दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। उन्होंने प्रिन्ट, ब्रॉडकास्ट और डिजिटल माध्यमों में पत्रकारिता की है। उन्होने और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने सबसे पहले इस खबर को अपने अफबार जनसत्ता में छापा था…उन्होने अपने बीबीसी के लेख में लिखा कि अगस्त की उस उमस भरी दोपहर में जनसत्ता अख़बार के दफ़्तर में वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने फ़ोटोकॉपी किए गए काग़ज़ों का एक पुलिंदा भूरे रंग के एक बड़े लिफ़ाफ़े से निकाल कर मेरे सामने रख दिया… जब उन्होने वो सारी फोटो देखी तो उन्हें अपनी आखों पर भरोसा नहीं हुआ… जिसके बाद उन्होने जनसत्ता अख़बार में सबसे पहले जैन हवाला कांड की ख़बर को विस्तार से उजागर किया. ख़बर एक लाइन में ये थी कि सीबीआई दो साल से उद्योगपति एसके जैन की ऐसी विस्फोटक डायरियों को दबाए बैठी है जिसमें कई वरिष्ठ सांसदों, मंत्रियों और बड़े अफ़सरों को कथित तौर पर कुल 64 करोड़ रुपए की रिश्वत दिए जाने का ब्यौरा दर्ज है. जिस तरह आज भी कई सनसनीख़ेज़ ख़बरों का उदगम डॉक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी बनते हैं, वैसे ही 29 साल पहले 29 जून, 1993 को दिल्ली की एक तपती दोपहर को उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी को अपने निशाने पर ले लिया. उन्होने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके ये बयान जारी किया, “मैं ये साबित कर दूँगा कि एक दलाल और हवाला कारोबारी सुरेंद्र जैन ने 1991 में लालकृष्ण आडवाणी को दो करोड़ रुपए दिए. जैन उस जाल से जुड़ा था जो विदेशी धन को यहाँ ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से रुपए में बदल कर कश्मीर के अलगाववादी संगठऩ जेकेएलएफ़ की मदद करता था.” जिसके बाद सीबीआई के डीआईजी ओपी शर्मा से इस जाँच की ज़िम्मेदारी ड्रामाई तौर छीन ली गई. फिर उनके घर पर छापा मारकर सीबीआई के अधिकारियों ने उन्हें एसके जैन के एक आदमी से रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ने का दावा किया. उन्हें सस्पेंड कर दिया गया.
ज़ाहिर है ओपी शर्मा इस बात से काफी नाराज़ थे और इस नाराज़ अफ़सर को ये पता था कि सुरेंद्र कुमार जैन के घर से बरामद हुई विस्फोटक डायरियों में किस किस राजनीतिक हस्ती का नाम दर्ज है. विस्फोटक तैयार था। जैन डायरियाँ मिलने के बाद हवाला और कश्मीरी अलगाववादियों और नेताओं-अफ़सरों की जाँच करने की बजाए सीबीआई ने पूरे मामले को रफ़ा दफ़ा करने की कोशिश की और छापे में बरामद डायरियाँ और दूसरी चीज़ें सीबीआई के मालख़ाने में जमा करवा दी गईं.लेकिन पूरे दो साल बाद इस मामले में फिर जान डाली गई जब डॉक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि हवाला कारोबारी ने लालकृष्ण आडवाणी को दो करोड़ रुपए दिए है. इस सूत्र को पकड़ कर ओपी शर्मा से संपर्क किया गया और 17 अगस्त, 1993 को जनसत्ता में डायरियों के हवाले से ख़बर दी गई. लेकिन इस बात पर अख़बार में पहले असमंजस की स्थिति थी कि डायरियों में दर्ज नेताओं के नाम छापे जाएँ या न छापे जाएँ… अगर नहीं छापे जाते तो खबर को कोई असर नहीं होता…जिसके बाद जनसत्ता में एक हफ़्ते की सोचविचार के बाद आख़िरकार 24 अगस्त, 1993 को पहले पन्ने पर इस ख़बर को छापा गया.
कुछ ही दिन बाद वकील राम जेठमलानी ने अपने घर पर एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की जिसमें सीबीआई के पूर्व डीआईजी ओपी शर्मा भी मौजूद थे और वहीं ऐलान किया गया कि हवाला कांड के मामले में अदालत का दरवाज़ा खटखटाया जाएगा…जिसके बाद अक्टूबर 1993 में जब सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दी गई तो मामले को दबाए रखने के लिए सीबीआई को कोर्ट ने कड़ी फटकार सुनाई और उद्योगपति एसके जैन की गिरफ़्तारी के आदेश दिए गए. इसके बाद मार्च 1994 को जैन को गिरफ़्तार किया गया उन्होंने सीबीआई को 29 पेज का बयान दिया जिसमें उन्होंने बताया कि किन किन लोगों को उन्होंने पैसा दिया और किन परिस्थितियों में भुगतान किया गया. आपको बता दें कि इन डायरियों में 115 नाम थे जिनमें से 92 नामों की पहचान कर ली गई थी. इनमें से 55 नेता, 23 अफ़सर और कम से कम तीन पत्रकार शामिल थे… लेकिन वो अंग्रेजी में कहावत है न कि You can lead a horse to water, but you can’t make it drink मतलब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को घोड़े की तरह खींचकर पानी के पास तो ले आई लेकिन पानी पीने पर मजबूर फिर नहीं कर पाई… तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा ने कई बार सीबीआई के अफ़सरों को लताड़ लगाई और यहाँ तक कि सरकार के दबाव से मुक्त करने के लिए सीबीआई अफ़सरों को सीधे कोर्ट के निर्देश में काम करने का हुक्म दिया. लेकिन सच तो ये है कि सीबीआई हवाला कांड की जाँच करने को तैयार ही नहीं थी… उसने पहले जैन डायरियों को दबाने की कोशिश की… लेकिन जनसत्ता अख़बार में छपने के बाद जब मामला सामने आया तो एजेंसी ने डायरियों को पहले सबूत के तौर पर पेश ही नहीं किया… और जब सुप्रीम कोर्ट की लताड़ के बाद उसने जाँच शुरू भी की तो अनचाहे मन से… जिसका परिणाम यह हुआ कि सभी 115 लोग एक के बाद एक छुटते चले गए। कहते हैं न कि “जब सारे फसंते हैं, तो सारे छूट भी जाते हैं”, और यहां वही हुआ।