
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के फैसले को लेकर देशभर में राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज हो गई हैं। खासकर, उस फैसले के बाद, जिसमें वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा सर्वेक्षण की अनुमति दी गई थी। इस फैसले के बाद, देश के विभिन्न हिस्सों में अन्य धार्मिक स्थलों पर भी ऐसे ही सर्वेक्षणों के लिए याचिकाएं दायर की गई हैं। इसके परिणामस्वरूप, कई विपक्षी दलों और संगठनों ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं।
चंद्रचूड़ के फैसले पर आलोचना
सपा के सांसद जिया उर रहमान बर्क और मोहिबुल्लाह नदवी ने इस फैसले को गलत और दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। उनका कहना है कि इस फैसले से देशभर में धार्मिक स्थलों पर सर्वेक्षण की मांग बढ़ सकती है, जिससे सांप्रदायिक तनाव और विवाद बढ़ने का खतरा है। सपा के वरिष्ठ नेता राम गोपाल यादव और कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यह 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन है और इससे देश में हिंसा और अशांति फैल सकती है।
AIMPLB की प्रतिक्रिया
अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने भी चंद्रचूड़ की पीठ द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण की अनुमति देने को गलत ठहराया है। बोर्ड का कहना है कि 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के अनुसार, धार्मिक स्थलों के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त 1947 से पहले जैसा बनाए रखने की शर्त है। इस कानून के तहत किसी धार्मिक स्थल की स्थिति को चुनौती नहीं दी जा सकती। बोर्ड ने कहा कि चंद्रचूड़ के फैसले ने अन्य धार्मिक स्थलों, जैसे मथुरा, लखनऊ, संभल और अजमेर शरीफ पर दावों को जन्म दिया है।
विपक्षी नेताओं द्वारा चिंता व्यक्त करना
कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने सवाल उठाया कि जब पूजा स्थल अधिनियम के अनुसार किसी धार्मिक स्थल का चरित्र नहीं बदला जा सकता, तो सर्वेक्षण करने का उद्देश्य क्या है? एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी यह सवाल किया कि अगर 1991 के कानून के तहत कोई नया दावा नहीं किया जा सकता, तो फिर सर्वेक्षण क्यों कराया जा रहा है? विपक्षी नेताओं का मानना है कि ऐसे सर्वेक्षण सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दे सकते हैं और देश में अशांति का कारण बन सकते हैं।
हिंदू पक्ष की प्रतिक्रिया
हिंदू पक्ष की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने इसका बचाव करते हुए कहा कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 केवल उन स्थलों पर लागू नहीं होता है, जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित किया गया है। उन्होंने कहा कि संभल मस्जिद भी एएसआई द्वारा संरक्षित स्थल है, इसलिए इस पर पूजा स्थल अधिनियम लागू नहीं होगा। इस आधार पर, उन्होंने संभल मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का समर्थन किया है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने 3 अगस्त, 2023 को ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण की अनुमति दी थी। कोर्ट ने यह कहा कि पूजा स्थल अधिनियम के तहत किसी धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र को बदला नहीं जा सकता, लेकिन उसके अस्तित्व का निर्धारण किया जा सकता है। कोर्ट का यह भी कहना था कि 1991 का कानून केवल धार्मिक स्थल के चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है, लेकिन उसके बारे में नया दावा दायर करने पर रोक नहीं है।
देशभर में बढ़ते विवाद
ज्ञानवापी मस्जिद के फैसले के बाद मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि से सटे शाही ईदगाह मस्जिद, लखनऊ में टीलेवाली मस्जिद, संभल में जामा मस्जिद और अजमेर शरीफ दरगाह जैसे अन्य धार्मिक स्थलों पर भी सर्वेक्षण की याचिकाएं दायर की गईं हैं। 14 दिसंबर, 2023 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वेक्षण कराने की अनुमति दी है। मध्य प्रदेश के भोजशाला में भी एएसआई द्वारा सर्वेक्षण की मांग की जा रही है।
निष्कर्ष
इस फैसले ने न केवल न्यायिक प्रणाली को चुनौती दी है, बल्कि देश में धार्मिक स्थलों से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर भी नई बहस छेड़ दी है। धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण और पूजा स्थल अधिनियम के तहत उनके धार्मिक चरित्र को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों के बीच विचार-विमर्श जारी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट को आगे के फैसले में इन संवेदनशील मुद्दों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना होगा।