VS Achuthanandan का निधन, 101 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस, जानें साधारण जीवन से असाधारण विरासत तक का सफर

VS Achuthanandan का निधन, 101 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस, जानें साधारण जीवन से असाधारण विरासत तक का सफर
VS Achuthanandan का निधन, 101 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस, जानें साधारण जीवन से असाधारण विरासत तक का सफर

तिरुवनंतपुरम: भारत के सबसे सम्मानित वामपंथी नेताओं में शुमार और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन का सोमवार को निधन हो गया। वे 101 वर्ष के थे। सीपीआई (एम) के राज्य सचिव एम. वी. गोविंदन ने उनके निधन की पुष्टि की। अच्युतानंदन पिछले एक महीने से हृदयाघात के बाद एक निजी अस्पताल में उपचाराधीन थे।

केरल की राजनीति का एक युग समाप्त

वी.एस. अच्युतानंदन के निधन के साथ केरल की राजनीति का एक युग समाप्त हो गया है। वे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे और आजीवन श्रमिकों के अधिकार, भूमि सुधार और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करते रहे।

मुख्यमंत्री से लेकर विपक्ष के नेता तक

उन्होंने 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। अच्युतानंदन सात बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए और तीन बार विपक्ष के नेता रहे। वे केरल विधानसभा के इतिहास में सबसे लंबे समय तक विपक्ष के नेता रहने वाले नेता रहे — कुल 15 वर्षों तक इस पद पर रहे।

मुख्यमंत्री पद के बाद, उन्होंने 2016 से 2021 तक केरल प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्यक्ष के रूप में कैबिनेट रैंक के साथ सेवा दी।

राजनीतिक यात्रा: संघर्ष और समर्पण

1938 में राज्य कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाले अच्युतानंदन ने 1940 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) की सदस्यता ली। उन्होंने केरल के भूमि आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभाई, विशेष रूप से 1970 के अलेप्पी घोषणापत्र के माध्यम से, जिसमें 1967 में ईएमएस नंबूदिरिपाद सरकार द्वारा लाए गए भूमि सुधार अधिनियम के क्रियान्वयन की मांग की गई थी।

उन्होंने अपना पूरा जीवन सामंती व्यवस्था और असमानता के विरोध में संघर्ष करते हुए बिताया। उनके राजनीतिक जीवन में कई चुनौतियां भी आईं — वे पांच साल जेल में और चार साल भूमिगत रहे।

1957 में वे सीपीआई की राज्य सचिवालय के सदस्य बने और 1964 में सीपीआई से अलग होकर सीपीआई (एम) बनाने वाले 32 नेताओं में वे अंतिम जीवित नेता थे।

साधारण जीवन से असाधारण विरासत तक

20 अक्टूबर 1923 को अलप्पुझा (तब त्रावणकोर राज्य) के पुन्नप्रा गांव में जन्मे अच्युतानंदन का बचपन संघर्षों से भरा रहा। चार वर्ष की आयु में मां और ग्यारह वर्ष में पिता को खो दिया। इसके बाद उन्हें स्कूल छोड़कर बड़े भाई की सिलाई की दुकान में काम करना पड़ा। बाद में वे एक नारियल रेशा (कोयर) कारखाने में रस्सियां बनाने का काम करने लगे।

अमर रहेगी उनकी विरासत

वी.एस. अच्युतानंदन अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए हैं, जो वंचितों के अधिकारों के लिए लड़ने, सच्चाई के पक्ष में खड़े रहने और नैतिक राजनीति की मिसाल है। उन्होंने अपने कार्यों से केरल की राजनीतिक और सामाजिक दिशा को गहराई से प्रभावित किया।

उनका जीवन, संघर्ष और सेवा भाव वामपंथी राजनीति और सामाजिक न्याय के समर्थकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।