नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें टाइगर ग्लोबल को भारत-मॉरीशस डबल टैक्सेशन अवॉयडेंस एग्रीमेंट (DTAA) के तहत फ्लिपकार्ट के शेयरों को वॉलमार्ट को बेचने से हुए पूंजीगत लाभ पर कर लाभ देने का आदेश दिया था। यह आदेश विदेशी निवेशकों के लिए अनिश्चितता उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे भारत में निवेश के ढांचे पर असर पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन शामिल थे, उन्होंने इस मुद्दे की व्यापक महत्वता को ध्यान में रखते हुए इसे “गंभीर विचार-विमर्श” के लिए रखा। कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को स्थगित कर दिया था, जिसमें टाइगर ग्लोबल को इंडिया-मॉरीशस DTAA के तहत कर लाभ प्रदान किया गया था। इससे पहले, प्राधिकृत अग्रिम निर्णय प्राधिकरण (AAR) ने टाइगर ग्लोबल को इस लेन-देन के लिए कर समझौते का लाभ नहीं दिया था।
यह मामला टाइगर ग्लोबल से जुड़ा है, जो एक कैटेगरी 1 ग्लोबल बिजनेस लाइसेंस और मॉरीशस से कर निवास प्रमाण पत्र (TRC) प्राप्त करता है। टाइगर ग्लोबल ने 2011 से 2015 के बीच सिंगापुर स्थित फ्लिपकार्ट के शेयर खरीदे थे और इसके बाद भारत में कई कंपनियों में भारी निवेश किया था। 2018 में टाइगर ग्लोबल ने इन शेयरों को बेचा, जिससे उसे पूंजीगत लाभ हुआ। इंडिया-मॉरीशस DTAA के तहत “ग्रैंडफादरिंग” प्रावधानों के तहत 1 अप्रैल 2017 से पहले खरीदी गई शेयरों पर भारत में पूंजीगत लाभ कर से छूट मिलती है।
टैक्स विशेषज्ञों के विचार
टैक्स विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश कई महत्वपूर्ण मुद्दों को जन्म दे सकता है।
टैक्स और संवैधानिक विशेषज्ञ अभिषेक ए. रस्तोगी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेश पर रोक लगाने से DTAA लाभ की पात्रता के बारे में अस्पष्टता उत्पन्न हो सकती है, खासकर जब निवेश मॉरीशस के माध्यम से किया गया हो। इससे निवेशकों के विश्वास पर असर पड़ सकता है और भारत में निवेश संरचना पर निर्णयों को प्रभावित किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की टैक्स संधियों पर स्थिति और उनके प्रावधानों की व्याख्या की समीक्षा हो सकती है, ताकि संधि के दुरुपयोग को रोका जा सके और भारत को विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बनाए रखा जा सके।
नांगिया एंड कंपनी के मैनेजिंग पार्टनर राकेश नांगिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह स्थगन दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाता है और यह संभावना जताई जा रही है कि टैक्स संधियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए अगले दौर में बहस की जाएगी।
दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला
पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट ने टैक्सपेयर-आकलनकर्ता की याचिका पर फैसला सुनाया था, जिसमें उसने कहा था कि इंडिया-सिंगापुर टैक्स संधि में शामिल “ग्रैंडफादरिंग” प्रावधान खुद ही संधि के दुरुपयोग से संबंधित आरोपों को हल करने के लिए पर्याप्त हैं। कोर्ट ने यह भी कहा था कि “राजस्व विभाग को अतिरिक्त बाधाओं या मानकों को बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिनके तहत पक्षों को DTAA लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक होगा।”
आगे की राह
एकेएम ग्लोबल के टैक्स पार्टनर अमित महेश्वरी ने कहा कि कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता हो सकती है, जैसे अप्रत्यक्ष हस्तांतरण मामलों में टैक्स संधियों की व्याख्या, कोंड्युट कंपनी क्या होती है, आर्थिक संरचना क्या है, और इस प्रक्रिया में क्या भूमिका होती है जब उस स्थान पर कर्मचारियों की जरूरत नहीं होती है। उन्होंने यह भी कहा कि इन मुद्दों पर स्पष्ट और सुसंगत दृष्टिकोण की आवश्यकता है और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस मामले में स्वागत योग्य होगा।
इस फैसले के बाद, यह स्पष्ट है कि भारत में विदेशी निवेश के लिए टैक्स संधियों की व्याख्या और उन्हें लागू करने का तरीका एक बड़ी बहस का विषय बनेगा, जो आगे चलकर नीति में सुधारों की दिशा को प्रभावित कर सकता है।