
नई दिल्ली: धनतेरस के शुभ अवसर पर जहां सोना, चांदी, बर्तन और गहनों की खरीदारी की जाती है, वहीं दो सामान्य वस्तुएं झाड़ू और धनिया के बीज भी विशेष रूप से खरीदी जाती हैं। ये साधारण वस्तुएं प्रतीकात्मक महत्व से भरपूर होती हैं और इनका सीधा संबंध समृद्धि, शुद्धता और सौभाग्य से है।
झाड़ू: दरिद्रता और नकारात्मकता को दूर करने का प्रतीक
धनतेरस पर नई झाड़ू खरीदना शुभ माना जाता है। यह घर से पुरानी परेशानियों, नकारात्मक ऊर्जा और गरीबी को ‘बाहर’ करने का प्रतीक है। माना जाता है कि साफ-सुथरा घर मां लक्ष्मी को आकर्षित करता है क्योंकि वह वहीं वास करती हैं जहां स्वच्छता और संतुलन होता है।
लक्ष्मी को रोककर रखने का उपाय
मान्यता है कि नई झाड़ू का उपयोग करने से मां लक्ष्मी घर छोड़कर नहीं जातीं। यह एक प्रतीक है कि नकारात्मकता और ऋण को झाड़ू से बाहर निकालकर आर्थिक रूप से नया आरंभ किया जा सकता है।
वास्तु और ऊर्जा संतुलन
वास्तु शास्त्र के अनुसार, स्वच्छ और अव्यवस्थित रहित घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार बेहतर होता है। धनतेरस पर नई झाड़ू खरीदना इस ऊर्जा प्रवाह को बनाए रखने का प्रतीकात्मक उपाय है।
धनिया के बीज: समृद्धि और वृद्धि का संकेत
धनिया के बीज छोटे जरूर होते हैं, लेकिन इनके पीछे छिपा संदेश बड़ा होता है। यह वृद्धि, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक माने जाते हैं।
देवी-देवताओं को अर्पण और धन संग्रह का प्रतीक
धनतेरस की पूजा में धनिया के बीज मां लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि को अर्पित किए जाते हैं। पूजा के बाद कुछ बीज लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी या धन के स्थान में रखे जाते हैं, जिससे घर में धन की वृद्धि हो।
बीज बोकर सौभाग्य उगाना
कुछ परंपराओं में पूजा के बाद इन बीजों को बगीचे या गमले में बोया जाता है। यह प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है कि जैसे बीज अंकुरित होते हैं, वैसे ही घर में समृद्धि और सुख-शांति का विकास होता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण
धनिया को कभी-कभी बुध ग्रह से भी जोड़ा जाता है, जो व्यापार, वाणी और बुद्धिमत्ता का कारक होता है। इसे घर में रखने या किसी को देने से बुध से संबंधित सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
शुद्धता और समृद्धि का अनोखा मेल
धनतेरस पर झाड़ू और धनिया की खरीद धार्मिक आस्था और प्रतीकात्मक परंपरा का सुंदर संयोजन है। जहां झाड़ू नकारात्मकता और विघ्न को हटाने का प्रतीक है, वहीं धनिया नए आरंभ, धन और सौभाग्य का संकेत देता है।
इस प्रकार, ये दो सरल चीजें हर वर्ग के व्यक्ति को बिना भारी खर्च के भी इस शुभ दिन की परंपराओं में भागीदार बनाती हैं।











