
भारत हर साल 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाता है, जो देश के महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती का प्रतीक है। इसे “साहस का दिन” भी कहा जाता है, जो उनके अदम्य साहस और भारत की स्वतंत्रता के लिए उनके अद्वितीय योगदान का सम्मान करता है। इस दिन, नेताजी के अद्भुत जीवन और उनकी विरासत को याद किया जाता है।
पराक्रम दिवस का इतिहास
2021 में भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 124वीं जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में घोषित किया। यह कदम उनके अटूट साहस और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी निर्णायक भूमिका को सम्मानित करने के उद्देश्य से उठाया गया। पराक्रम दिवस देशवासियों को नेताजी के दृष्टिकोण—एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर भारत—की याद दिलाता है और उनकी प्रेरणा को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करता है।
देश भर में आयोजित कार्यक्रमों और नेताओं द्वारा दी गई श्रद्धांजलियों के माध्यम से यह दिन नेताजी की अमर विरासत को जीवंत बनाए रखने का प्रयास है।
पराक्रम दिवस का महत्व
पराक्रम दिवस भारत के युवाओं और नागरिकों को नेताजी के साहस और राष्ट्रभक्ति से प्रेरणा लेने का संदेश देता है। यह दिन हमें उनके बलिदान, धैर्य और अद्वितीय नेतृत्व की याद दिलाता है। नेताजी के नेतृत्व में बने आजाद हिंद फौज और आजाद हिंद सरकार उनकी स्वतंत्रता के प्रति अडिग प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
इस दिन का उद्देश्य हर भारतीय को उनकी देशभक्ति और अदम्य साहस के मूल्यों को अपनाने और एक सशक्त, एकजुट और स्वतंत्र भारत के निर्माण में योगदान देने के लिए प्रेरित करना है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस: जीवन और विरासत
23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रखर और प्रेरणादायक नेताओं में से एक थे। एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार में जन्मे नेताजी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक में प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज और प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाई की, जहां उनके भीतर राष्ट्रवादी भावना प्रबल हो उठी।
1916 में, उनके क्रांतिकारी विचारों के कारण उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया, लेकिन इससे उनके संकल्प और मजबूत हो गए। उनकी प्रतिभा ने उन्हें इंग्लैंड में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (ICS) में स्थान दिलाया। हालांकि, उन्होंने 1921 में इस प्रतिष्ठित पद से इस्तीफा दे दिया और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी का नेतृत्व
नेताजी का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ाव उनके राजनीतिक जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव था। 1923 में, उन्होंने ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद 1938 और 1939 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।
उनका कार्यकाल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ राष्ट्र को संगठित करने और आंदोलन तेज करने के प्रयासों से भरा रहा। 1939 में, उन्होंने कांग्रेस के भीतर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ का गठन किया और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष तेज किया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, नेताजी का दृष्टिकोण और अधिक साहसिक हो गया। उन्होंने 1942 में आजाद हिंद फौज (INA) का गठन किया और ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व किया। उनके मशहूर नारे “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” ने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया।
पराक्रम दिवस का संदेश
पराक्रम दिवस नेताजी के साहस और निडर नेतृत्व की याद दिलाने के साथ-साथ देश के हर नागरिक को उनके सपनों का भारत बनाने के लिए प्रेरित करता है। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे आत्मबलिदान, धैर्य और साहस से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
इस पराक्रम दिवस पर, आइए हम सभी नेताजी के दिखाए मार्ग पर चलने और एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में अपनी भूमिका निभाने का संकल्प लें।