
मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मोड़ उस समय आया जब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधान परिषद में उद्धव ठाकरे को एक तरह से सत्ताधारी गठबंधन में शामिल होने का खुला ऑफर दे डाला। बीते वर्षों की कटुता और राजनीतिक संघर्ष को पीछे छोड़ते हुए फडणवीस का यह बयान राज्य की राजनीति में हलचल मचा रहा है।
फडणवीस ने विधान परिषद में विपक्ष के नेता के विदाई समारोह के दौरान मुस्कराते हुए कहा,
“देखिए उद्धव जी, 2029 तक तो वहां (विपक्ष) में आने का स्कोप नहीं है। लेकिन आपको इधर आना हो तो विचार कीजिए। आप पर निर्भर है…”
उन्होंने आगे कहा कि भले ही अम्बादास दानवे (उद्धव गुट के नेता) विपक्ष में हों, लेकिन उनके असली विचार हिंदुत्ववादी हैं।
बीएमसी चुनाव से पहले आया प्रस्ताव
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव कुछ ही महीनों दूर हैं। बीएमसी पर अब तक उद्धव ठाकरे गुट का कब्जा रहा है। पिछली बार बीजेपी और शिवसेना की सीटें लगभग बराबर रही थीं। फडणवीस का यह बयान साफ संकेत देता है कि बीजेपी उद्धव ठाकरे के साथ पुराने गठबंधन को फिर से ज़िंदा करने के लिए तैयार है—शर्त यही है कि उद्धव गुट विचार करे।
उद्धव ठाकरे की हालिया सक्रियता
हाल ही में उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई राज ठाकरे (मनसे प्रमुख) के साथ एक मंच साझा किया और दोनों ने महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के प्रस्ताव का विरोध किया था। दोनों भाइयों ने करीब 20 साल बाद एक साथ आकर सियासी समीकरणों में हलचल पैदा कर दी थी। हालांकि, शिवसेना के लिए मनसे के उत्तर भारतीय विरोधी रुख से सहज होना कठिन है, जिससे संभावित गठबंधन फिलहाल असमंजस में है।
गठबंधन की सियासी पेचीदगियाँ
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उद्धव ठाकरे गुट का मौजूदा सत्तारूढ़ गठबंधन (बीजेपी-शिंदे गुट-एनसीपी अजित गुट) में शामिल होना राजनीतिक रूप से जटिल होगा। खासकर क्योंकि बीजेपी पहले से ही एकनाथ शिंदे गुट को साथ लेकर चल रही है, जिसने शिवसेना में बड़ी टूट करवाई थी।
2019 से अब तक: बदलती राजनीतिक तस्वीर
- 2019 में विधानसभा चुनाव तक बीजेपी और शिवसेना (उद्धव गुट) साथ थे।
- लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर मतभेद हुआ और उद्धव ने कांग्रेस व एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी सरकार बनाई।
- 2022 में शिवसेना टूट गई और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में नया गुट बना, जिसे बीजेपी का समर्थन मिला।
- 2024 में बीजेपी-शिंदे गुट-अजित पवार गुट ने मिलकर भारी बहुमत से सरकार बनाई।
क्या उद्धव फिर बीजेपी के साथ आएंगे?
फडणवीस का बयान स्पष्ट रूप से एक सियासी संकेत है, लेकिन उद्धव ठाकरे के लिए यह निर्णय लेना आसान नहीं होगा। एक ओर उनकी पारंपरिक शिवसैनिक छवि, दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी के साथ विचारधारा में बदलाव—इनके बीच संतुलन बनाना उनके लिए बड़ी चुनौती है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या उद्धव ठाकरे इस प्रस्ताव पर ‘विचार’ करेंगे या इसे सियासी चुटकी मानकर टाल देंगे। लेकिन इतना तय है कि महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर गति पकड़ चुकी है।