नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के नेता यासीन मलिक ने शुक्रवार (4 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि वह “आतंकवादी” नहीं, बल्कि एक “राजनीतिक नेता” हैं। मलिक ने यह बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की बेंच के सामने दिया। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि अतीत में सात प्रधानमंत्री उनके साथ बातचीत कर चुके हैं और उनके खिलाफ लगे आरोप निराधार हैं।
मलिक ने सीबीआई के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा प्रस्तुत की गई उस रिपोर्ट का उल्लेख किया जिसमें कहा गया था कि वह आतंकवादी हाफिज सईद के साथ फोटो खिंचवाते थे और यह तस्वीरें राष्ट्रीय व क्षेत्रीय मीडिया में प्रकाशित हुई थीं। इस पर यासिन मलिक ने कहा, “इस तरह की बातें मेरे खिलाफ एक सार्वजनिक नैरेटरिव बना रही हैं। केंद्र सरकार ने मेरी संस्था को आतंकवादी संगठन के रूप में नहीं घोषित किया है।”
उन्होंने यह भी बताया कि 1994 में एकतरफा युद्धविराम के बाद उन्हें 32 मामलों में जमानत दी गई थी और इन मामलों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं की गई। मलिक ने प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल का हवाला देते हुए कहा कि “सभी ने युद्धविराम की शर्तों का पालन किया। अब अचानक मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 35 साल पुराने मामले मेरे खिलाफ चलाए जा रहे हैं, जो युद्धविराम समझौते के खिलाफ है।”
सीबीआई ने मलिक के बयान को किया खारिज
इस पर सीबीआई के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि युद्धविराम अब इस मामले में कोई प्रासंगिकता नहीं रखता है। बेंच ने भी इस मामले में निर्णय देते हुए कहा कि वह मामले की Merits पर विचार नहीं कर रहे हैं, बल्कि यह तय कर रहे हैं कि मलिक को गवाही देने के लिए वर्चुअली अनुमति दी जाए या नहीं। मलिक ने आगे कहा, “मुझ पर जो एफआईआर दर्ज की गई हैं, वे केवल मेरे शांतिपूर्ण राजनीतिक विरोध से संबंधित हैं, ना कि किसी आतंकवादी गतिविधि से।”
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने यासिन मलिक को जम्मू कोर्ट में शारीरिक रूप से पेश होने की अनुमति नहीं दी, लेकिन उन्हें तिहाड़ जेल से वर्चुअली गवाहों का परीक्षण करने की अनुमति दी। इसके साथ ही, सीबीआई ने 1989 में रबैया सईद के अपहरण और 1990 के श्रीनगर गोलीबारी मामले को जम्मू से दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया। यह मामला यासिन मलिक की गिरफ्तारी के बाद देशभर में चर्चित हो गया है और राजनीतिक हलकों में गहरी हलचल पैदा कर दी है।