L&T के चेयरमैन SN Subramaniam 90 घटें कराना चाहते हैं काम, Deepika Padukone ने दी तीखी प्रतिक्रिया

L&T के चेयरमैन SN Subramaniam 90 घटें कराना चाहते हैं काम, Deepika Padukone ने दी तीखी प्रतिक्रिया
L&T के चेयरमैन SN Subramaniam 90 घटें कराना चाहते हैं काम, Deepika Padukone ने दी तीखी प्रतिक्रिया

हाल ही में लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रहमण्यम के विवादित बयान ने देशभर में तीखी प्रतिक्रिया पैदा कर दी। अपने कर्मचारियों के साथ बातचीत के दौरान सुब्रहमण्यम ने कहा, “घर पर बैठकर आप क्या करते हैं? कितनी देर तक अपनी पत्नी को देख सकते हैं? और पत्नियां कितनी देर तक अपने पतियों को देख सकती हैं? ऑफिस जाइए और काम शुरू कीजिए। मुझे खेद है कि मैं आपसे रविवार को काम नहीं करवा पा रहा। मैं खुश होता अगर आप रविवार को भी काम करते, क्योंकि मैं भी रविवार को काम करता हूं।”

इसके साथ ही, उन्होंने एक चीनी व्यक्ति का उदाहरण देते हुए कहा कि चीन के लोग हर हफ्ते 90 घंटे काम करते हैं, जबकि अमेरिका के लोग केवल 50 घंटे। इस बयान के बाद सोशल मीडिया और कॉर्पोरेट जगत में नाराजगी की लहर दौड़ गई।

दीपिका पादुकोण ने दी तीखी प्रतिक्रिया

बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण, जो मानसिक स्वास्थ्य और कार्य-जीवन संतुलन के लिए आवाज उठाती रही हैं, उन्होंने सुब्रहमण्यम के बयान की कड़ी आलोचना की। उन्होंने पत्रकार फेय डिसूजा की पोस्ट को साझा करते हुए लिखा, “यह चौंकाने वाला है कि इतने वरिष्ठ पदों पर बैठे लोग ऐसे बयान देते हैं।” दीपिका ने इस बयान को न केवल असंवेदनशील बताया, बल्कि इसे मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही का प्रतीक करार दिया।

ईवी गर्ल की आत्महत्या: एक दुखद उदाहरण

कारपोरेट जगत के अत्यधिक कामकाजी दबाव का परिणाम हाल ही में इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) कंपनी में काम करने वाली एक युवा महिला की आत्महत्या के रूप में सामने आया। इस युवती ने लगातार 14-15 घंटे काम करने के चलते हुए मानसिक तनाव को सहन न कर पाने का हवाला देते हुए अपनी जान दे दी। उसके अंतिम नोट ने यह स्पष्ट किया कि कैसे कॉर्पोरेट जगत में कर्मचारियों को मशीनों की तरह काम करने पर मजबूर किया जाता है।

कार्य-संस्कृति पर गंभीर सवाल

सुब्रहमण्यम जैसे बयान न केवल असंवेदनशील हैं, बल्कि यह दिखाते हैं कि कारपोरेट नेतृत्व मानसिक स्वास्थ्य, काम और जीवन के बीच संतुलन और कर्मचारियों की भलाई को कितनी कम प्राथमिकता देता है। क्या 90 घंटे काम करने वाले कर्मचारी मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं? क्या इन कंपनियों को अपने कर्मचारियों को इंसान की तरह देखने की जरूरत नहीं है?

आज के युग में जब मानसिक स्वास्थ्य को एक गंभीर मुद्दा माना जा रहा है, ऐसे बयान कार्यस्थलों को और अधिक विषाक्त बनाते हैं। भारत जैसे देश में, जहां पहले से ही काम के दबाव और असुरक्षा के कारण मानसिक स्वास्थ्य संकट गहराता जा रहा है, कारपोरेट जगत के नेताओं को जिम्मेदारी से बयान देने की जरूरत है।

कारपोरेट जगत के प्रति नाराजगी

कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने इस बयान की निंदा करते हुए कहा है कि कारपोरेट नेतृत्व को अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना चाहिए। काम और जीवन के बीच संतुलन बनाए बिना कर्मचारियों से अधिक उत्पादकता की उम्मीद करना अमानवीय है।

आवश्यक बदलाव की जरूरत

भारत में कॉर्पोरेट संस्कृति को बदलने और कर्मचारियों को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की प्राथमिकता देने की जरूरत है। अधिक कामकाजी घंटे केवल लाभ का साधन नहीं हो सकते। यह समय है कि कंपनियां कर्मचारियों को इंसान समझें, न कि केवल संसाधन। सुब्रहमण्यम का बयान इस बात का प्रमाण है कि कॉर्पोरेट जगत में संवेदनशीलता की कितनी कमी है। इस रवैये को बदलने की सख्त जरूरत है।

Digikhabar Editorial Team
DigiKhabar.in हिंदी ख़बरों का प्रामाणिक एवं विश्वसनीय माध्यम है जिसका ध्येय है "केवलं सत्यम" मतलब केवल सच सच्चाई से समझौता न करना ही हमारा मंत्र है और निष्पक्ष पत्रकारिता हमारा उद्देश्य.