Shashi Tharoor का कांग्रेस से मतभेद बयान से मची खलबली, राहुल गांधी ले सकते हैं बड़ा फैसला

Shashi Tharoor का कांग्रेस से मतभेद बयान से मची खलबली, राहुल गांधी ले सकते हैं बड़ा फैसला
Shashi Tharoor का कांग्रेस से मतभेद बयान से मची खलबली, राहुल गांधी ले सकते हैं बड़ा फैसला

तिरुवनंतपुरम: कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ नेता डॉ. शशि थरूर ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि भले ही पार्टी के कुछ नेताओं से उनके मतभेद हों, लेकिन वे कांग्रेस की मूल विचारधारा और सिद्धांतों के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। तिरुवनंतपुरम में गुरुवार को मीडिया से बात करते हुए थरूर ने कहा कि वे उपचुनाव के नतीजों के बाद ही इस विषय पर विस्तार से बोलेंगे, लेकिन इतना ज़रूर माना कि जिन नेताओं से मतभेद हैं, उनके नाम पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में हैं।

नीलांबुर उपचुनाव में नहीं मिला आमंत्रण

थरूर ने यह भी खुलासा किया कि केरल की नीलांबुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में उन्हें प्रचार के लिए आमंत्रित नहीं किया गया, जबकि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने वहां प्रचार किया था। थरूर ने याद दिलाया कि पिछले साल वायनाड उपचुनाव में उन्हें आमंत्रित किया गया था और उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी। इस घटनाक्रम ने राजनीतिक हलकों में कांग्रेस और थरूर के बीच रिश्तों को लेकर नई अटकलें पैदा कर दी हैं।

प्रधानमंत्री से मुलाकात और ‘राष्ट्रीय हित’ की प्राथमिकता

हाल ही में डॉ. थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, जिसमें भारत के ऑपरेशन सिंदूर और उसके अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पर चर्चा हुई। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई जब थरूर भारत सरकार के एक विशेष डेलिगेशन के प्रमुख के रूप में अमेरिका, ब्राज़ील और अन्य देशों की यात्रा पर थे।

थरूर ने जोर देकर कहा, “जब मैंने विदेश मामलों की संसदीय समिति की अध्यक्षता संभाली थी, तब ही स्पष्ट कर दिया था कि मेरी निष्ठा राष्ट्रीय हित के प्रति है, न कि किसी एक पार्टी की विदेश नीति के प्रति।”

कांग्रेस से बढ़ती दूरी के चार बड़े संकेत

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, थरूर और कांग्रेस नेतृत्व के बीच बढ़ती दूरी अचानक नहीं आई है, बल्कि हालिया घटनाएं इसकी पुष्टि करती हैं:

  1. डेलिगेशन में अकेले थरूर की भागीदारी:
    ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत सरकार ने जो डेलिगेशन भेजे, उनमें कांग्रेस से सिर्फ थरूर को ही शामिल किया गया, जबकि पार्टी ने अन्य नाम भी भेजे थे।
  2. पार्टी की असहमति, लेकिन थरूर की सहमति:
    कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था कि पार्टी की तरफ से थरूर का नाम नहीं भेजा गया, फिर भी थरूर ने इसे “सम्मानजनक ज़िम्मेदारी” मानते हुए स्वीकार किया।
  3. ‘देशहित पहले’ का बयान:
    अमेरिका में थरूर ने मीडिया से कहा कि राष्ट्रहित में किया गया कार्य कभी पार्टी विरोध नहीं हो सकता – यह बयान कई कांग्रेस नेताओं को असहज कर गया।
  4. ‘पहले भारतीय’ होने की सोच:
    थरूर का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर वह पहले भारतीय होते हैं, फिर किसी पार्टी के प्रतिनिधि – यह उनके दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं को दर्शाता है।

क्या कांग्रेस में थरूर की भूमिका बदलने वाली है?

राजनीतिक गलियारों में यह सवाल गर्म है कि क्या शशि थरूर कांग्रेस में अपनी भूमिका को फिर से परिभाषित करेंगे या भविष्य में कोई बड़ा कदम उठाएंगे। फिलहाल वे किसी भी निर्णय या टिप्पणी से बच रहे हैं, लेकिन उपचुनाव के नतीजों के बाद उनके रुख में स्पष्टता आने की उम्मीद है। डॉ. शशि थरूर भले ही कुछ नेताओं से असहमति रखते हों, लेकिन उनकी राष्ट्रभक्ति और कांग्रेस के मूल मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। अब सभी की निगाहें आगामी उपचुनाव के परिणाम और उसके बाद उनके संभावित राजनीतिक रुख पर टिकी हैं।